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व्याकुल मन के श्लोक
पल-पल
छिन-छिन
व्याकुल मन
हृदय वेदना
व्यथित तन

उमड़-घुमड़
उभरे संसय
अतिथि देवो
खातिर कुछ
वक़्त संचय

भयी भोर सुहानी
दोपहर अंजानी
गया गदवेरा
बिती रात
बेगानी

शनै-शनै
बिते दिन रैना
पिया मोरे
अजहुं न आए
झर-झर
अंसुवन बहे नैना

पिया मिलन की
आस में विरहीन
दिही बिसराय
सुध-बुध
प्यासी मृत प्राय
हुई मैना

महीने दर महीने
बरस दर बरस
बिते सदियां
बित गईं
आत्म स्पर्श
कर मिट्टी तप गईं

हे! मन
चरण रज
तजो तारणहार
मुक्ती-युक्ती
करो उद्धार
© स्वरचित Radha Singh