...

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धूप छांव
धूप छांव का खेल है ज़िन्दगी,
सुख दुख का मेल है ज़िन्दगी ,
कभी जन्नत तो कभी जेल हैं ज़िन्दगी,
चलती जाती जैसे कोई रेल है ज़िन्दगी।
ऐसे ही तो बनती है ज़िन्दगी ,
बिना बिगड़े नहीं सवर्ती है ज़िन्दगी।
उतार चढाव हिस्से है इसके तभी तो बनते किस्से है इसके , बिना सफलताओं और असफलताओं के लगती मजबूरी है ज़िन्दगी ,पूरी होकर भी जैसे अधूरी हो ज़िन्दगी।