...

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किसान
किसान कहने को तो यूं एक शब्द ही है।
पर मैं समझता हूं धरती का भगवान है ,
ये।
न मांगा कुछ इसने सरकारों से,
सब कुछ दिया ही दिया,
कभी अन्न दिया ,कभी धन दिया।
न जाने कितने बेटे इसने न्योछावर किए भारत मां कि रखवाली के लिए ।
तपती धूप हो ,या हो वो सर्दियों वाली रात
रुका नहीं कभी ये।
तुम समझते हो ये सिर्फ फसल है,
कुछ सपने बोये है इसने इस मिट्टी में।
दिन रात सिंचा है उनको अपने पसीने से,
एक बेमौसम बारिश और,
बरबाद होती फसलों को देखकर ,
आंसु तो इसके भी आए होंगे ।
टुटे सपनों को फिर संजोया है इसने,
एक बार फिर एक खेत बोया है इसने।

न मांगा कुछ इसने सब दिया ही दिया।
न जाने कितनी सरकारें इसने बनायी ,
वो भुल गए सता में बैठे लोग।
फिर भी याद रखना, महलों में तुम्हारा पेट
आज भी ये किसान ही भरता है ।

मेरे पास इतने शब्द नहीं कि मैं शब्दों में पिरो सकु ,
कुछ शब्द नहीं ये, कुछ भाव लिखे हैं मेंने......
लेखक -सुभाष रणवां