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वरदान
देहि शिवा बर मोहे ईहै
शुभ कर्मन ते कबहूँ न टरूं
न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं,
निश्चय कर अपनी जीत करौं,
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मैं शक्ति कृपानिधान की,
मैं प्रेरणा भगवान की
लड़ जाऊँगी हर विपत्ति से
मैं कालिका कृपाण सी।
मर्दानी सी मैं जूझती
महादेव को मैं पूजती
आकाशवाणी सी अटल
अन्नपूर्णा महायान सी।
मैं ज्ञान सागर की तरंग
नस-नाड़ियों की मैं उमंग
मैं कष्टहारी क्वाथ हूँ
विजय श्री जयगान सी।
वैदेही का मैं वेश हूँ
द्रौपदी का केश हूँ
निर्दोष हूँ, निष्पाप हूँ
विनम्र हूँ सद्ज्ञान सी।
मैं आरती का हूँ दिया
ज्योतिर्मय जिससे जाह्नवी
महायज्ञ मैं अनुसंधान हूँ
मैं सिद्धि हूँ वरदान सी।
© drajaysharma_yayaver