...

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याद बहुत आती हो "माँ"
बहुत सुंदर पंक्तियां****

कितनी ऐसी बातें होंगी जो
मैं तुझसे और तू मुझसे
कह नहीं पाती हो,,, मां,
हर रोज़ सुबह उठकर मैं जब भी चाय बनाती हूं,,, तुम याद बहुत आती हो,,, मां,
बिना कुछ भी खाए जब मैं
काम पर लग जाती हूं या
खुद अपने बच्चों की खातिर वो घी वाली रोटी बनाती हूं,,, तो याद बहुत आती हो,,, मां,
रूखे बालों में तेल लगा कर
खुद ही खुदको समझाती हूं,
काला टीका भी कौन करे
जब सज-धजकर बाहर आती हूं,
तब याद बहुत आती हो,,, मां,
आहाऽऽऽ वो तेरे हाथ का जादू,
कि बाहर का खाना याद नहीं,
वो साधारण सब्जी रोटी में
जाने क्या मिलाती हो,
वो स्वाद कहां से लाती हो मां,
तुम याद बहुत आती हो,,, मां,
रोते-रोते जब कभी मैं
खुद ही चुप हो जाती हूं,
या हो उदास मन तो भी मैं तुझसे
अपना हाल छुपाती हूं,,, तब याद बहुत आती हो,,, मां,
मंदिर में ईश्वर के आगे
जब भी सर मैं झुकाती हूं,
होली हो या दिवाली
आंगन में रंगोली भी तो
इसीलिए सजाती हूं,
क्यूंकि खुद में तुझको ही पाती
हूं मां... मैं खुद में तुझको ही पाती हूं,,, मां,
हां! एक छोर जो छूट गया
वो भी तुझे बताती हूं--
कल मुझे बुखार चढ़ आया,
पूछकर सब चले गए,
कौन करे पट्टी पानी की,
ये सोचके आंसू मेरे निकल गए,
एक बात बतलाओ मुझको,
मैं तेरा हिस्सा होकर भी,
क्यूं साथ तेरे नहीं रह सकती मां,
ऐसा क्या है कि मैं तुझसे ये बात नहीं कह सकती मां,
क्यूं मुझको सब कुछ देकर भी तू साथ मेरे नहीं रह सकती मां,
पर याद बहुत आती हो मां
तुम याद बहुत आती हो मां।।
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