...

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जमाने के लिए आँसू भी है शबनम की तरह
बाँट लेना अपने ग़म भी किसी खुशी की तरह
परायी आंख के आंसू कब लगते हैं अपनी आँखों की तरह

कौन समझेगा दर्द तेरे आंसुओ का यहाँ
ज़माने के लिए आंसू भी हैं किसी शबनम की तरह

किसे अपना और किसे पराया समझे
जब से हो गया हूँ तेरे लिए किसी अजनबी की तरह

में तेरे शहर से बहुत दूर चला जाऊँगा
थक गया हूँ भटकते हुए किसी मुसाफिर की तरह

याद आओगे तो कह दूँगा खुदा से अपने
उसे महफ़ूज़ रखना सदा फ़ूलों की तरह