...

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ये अंधेरी रातें
मैने एक झूठ रचा है
अपने आसपास
खुश रहने का
जिंदा रहने का

तुम्हारे ना होने का सच
जीने नहीं देगा
और तुम्हारा ना होना
ऐसा है जैसे
आसमान का ना होना
जैसे दीवारों के ऊपर
छत का ना होना
जैसे बादल का ना होना
बरसात से पहले

कई बार लगा की
तुम्हे पुकारूँ
शायद तुम चले आओ
एक बार
अलविदा कहने ही सही
पर नहीं कर पाई
आवाज अक्सर
गले में दब कर रह गई
जैसे गला घोट दिया गया हो
किसी अजन्मे बच्चे का

तुमसे अलग होने के बाद
बहुत सी रातें बोझिल रहीं हैं
ये रात भी उनमें से एक है
मनहूस सी
मुझे नहीं पसंद
ये अंधेरी काली रातें

कई रात जाग कर गुजारा मैने
इस उम्मीद में की
बस इसके बाद सुबह होगी
एक ऐसी सुबह
जिसमे तुमसे विरह की याद नहीं होगी
जिस सुबह मैं तुम्हे भूल चुकी हूंगी

© life🧬