...

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तू मेरे गाँव में मशहूर बहुत है!
मेरे गाँव मे तु मशहूर बहुत है,
तेरा शहर मगर दूर बहुत है!

खोलकर नादानियों की किताब बैठा हूँ में,
उसमें किस्सा हमारा मशहूर बहुत है!

यादें हमारी संभालकर रखना ज़रा,
यहाँ भूल जाने का दसतूर बहुत है!

जानता हूँ मुलाक़ात भी मुमकिन नहीं अब,
मगर उम्मीद बनाये रखने में सुकून बहुत है!

सुबह में खिलते गुलाब की तरह हो तुम,
जानां गुलाब हमारे यहाँ मशहूर बहुत है!
© alfaaz-e-aas