...

4 views

Guru Puran
गरुड़ पुराण मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है । मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव - जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी , तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की । इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया । एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर की अथाह गहराई में छुपा दिया , तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया । किया । मत्स्य अवतार की कथा एक बार ब्रह्माजी की असावधानी के कारण एक बहुत बड़े दैत्य ने वेदों को चुरा लिया । उस दैत्य का नाम हयग्रीव था । वेदों को चुरा लिए जाने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया । चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया । तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण करके हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की । भगवान ने मत्स्य का रूप किस प्रकार धारणइसकी विस्मयकारिणी कथा इस प्रकार है कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था । राजा का नाम सत्यव्रत था । सत्यव्रत पुण्यात्मा तो था ही , बड़े उदार हृदय का भी था । प्रभात का समय था । सूर्योदय हो चुका था । सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था । उसने स्नान करने के पश्चात जब तर्पण के लिए अंजलि में जल लिया , तो अंजलि में जल के साथ एक छोटी - सी मछली भी आ गई । सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ दिया । मछली बोली राजन ! जल के बड़े - बड़े जीव छोटे - छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं । अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा । कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए । सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी । उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडलु में डाल लिया । तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी । एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडलु उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा । दूसरे दिन मछली सत्यव्रत से बोली- राजन ! मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूंढ़िए , क्योंकि मेरा शरीर बढ़ गया है । मुझे घूमने - फिरने में बड़ा कष्ट होता है । सत्यव्रत ने मछली को कमंडलु से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया । यहाँ भी मछली का शरीर रात भर में ही मटके में इतना बढ़ गया कि मटका भी उसके रहने कि लिए छोटा पड़ गया । दूसरे दिन मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- राजन ! मेरे रहने के लिए कहीं और प्रबंध कीजिए , क्योंकि मटका भी मेरे रहने केलिए छोटा पड़ रहा है । तब सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर में डाल किया , किंतु सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़ गया । इसके बाद सत्यव्रत ) ने मछली को नदी में और फिर उसके बाद समुद्र में डाल दिया । आश्चर्य ! समुद्र में भी मछली का शरीर इतना अधिक बढ़ गया कि मछली के रहने के लिए वह छोटा पड़ गया । अतः मछली पुनः सत्यव्रत से बोली राजन ! यह समुद्र भी मेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है । मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और कीजिए । अब सत्यव्रत विस्मित हो उठा । उसने आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी । वह विस्मय - भरे स्वर में बोला- मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबो देने वाले आप कौन हैं ? मत्स्य रूपधारी श्रीहरि ने उत्तर दिया- राजन ! हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है । जगत में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है । मैंने हयग्रीव को मारने के लिए ही मत्स्य का रूप धारण किया है । आज से सातवें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी । समुद्र उमड़ उठेगा । भयानक वृष्टि होगी । सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी । जल के अतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा । आपके पास एक नाव पहुँचेगी । आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्त ऋषियों के साथके साथ उस नाव पर बैठ गए । उन्होंने नाव के ऊपर संपूर्ण अनाजों और औषधियों के बीज भी भर लिए ।नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी । प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्त कहीं भी कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था । सहसा मत्स्य रूपी भगवान प्रलय के सागर में दिखाई पड़े । सत्यव्रत और सप्त ऋषि गण मतस्य रूपी भगवान की प्रार्थना करने लगे । भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा । वे जीते जी ही जीवन मुक्त हो गए । प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य रूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिए । भगवान ने ब्रह्माजी को पुनः वेद दे दिए । इस प्रकार भगवान ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही , साथ ही संसार के प्राणियों का भी अमित कल्याण किया ।