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नारी -- मैं
नारी सदियों से अपनी रचनाओं का सृजन करती आयी है, उन रचनाओं में उसने लिखा है भगवान को, जननी को, पिता को, पुत्र को, पुत्री को, बच्चों की मुस्कुराहट को, जीवनसाथी को, प्रेमी को, अधूरी प्रेम कहानी को, अधूरी जीवनियों को, सृष्टि को, प्राकृतिक सौंदर्य को, अनगिनत विषयों पर अपने विचारों को अपनी रचनाओं में वर्णित किया है! वह अपना वर्णन किसी रचना में, किसी काग़ज़ पर विरले ही करती होगी, आज अवसर मिला है स्वयं को बताने का! नवजीवन की जननी, बहुत कम शब्दों में भी पूरा ब्रहमांड है! हे नारी तुम्हें हृदय से सादर नमन है🙏🙏

सुधा, यह नाम पापा की दी हुई अंतिम स्मृति जो मेरे साथ अंत तक रहेगी! पढ़ो तो मात्र दो अक्षरों का नाम, अर्थ सोम, पीयूष, अमृत !

प्राण त्यागते व्यक्ति को एक बूँद ही जीवन दे जाती है, इंसानियत से परिपूर्ण, ऐसा ही कुछ व्यक्तित्व लिए गुणों की खान, सदा सबके लिए अच्छा सोचना, अच्छा करना और किसी को एक पल की भी मुस्कुराहट देने से पहले कभी रुक कर न सोचने वाली मैं, सुधा यथा नामे तथा गुणे सदा से बने रहना चाहती हूँ🙏

अपने नाम से मुझे बहुत प्यार है, पुकारे जाने पर, बहुत गौरवांतित महसूस करती हूँ! जितनी बार पुकारा जाए उतना ही जीवन के पल और बढ़ जाते हैं, और क्या कहूँ, जितना लिखूँ कम ही रहेगा!

बहुत अच्छा लग रहा है अपनी प्रशंसा और परिचय लिखने में 🙈🙈🙈🥰🥰🥰🥰🤩😊😊🙏💐💐


© सुधा सिंह 💐💐