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कल्पना में खोई लड़की
कल्पना में खोई लड़की
गुंजा बड़ी ही प्यारी और भोली सी लड़की थी उसके कोई भाई नही था वो अक्सर कल्पना देखती थी की मेरा भी भाई होता तो हम ये करते वो करते वो हमेशा अपने कल्पना में एक भाई देखती उससे बातें करती लेकिन उसकी किस्मत में भाई नही था फिर भी वो अपने कल्पना में भाई के साथ कभी प्यार कभी लड़ाई करते रहती थी उसकी माँ उसे अक्सर झिड़क देती थी।
अरे ओ गुंजा अपनी कल्पना से बाहर निकल और घर के काम भी कर ले नही तो ससुराल वाले समझेंगे की लड़की पागल या भूत प्रेत तो नही पकड़ लिया है जो अकेले में बड़बड़ाते रहती है।

बेचारी अपनी माँ से खूब डांट भी सुनती थी लेकिन कल्पना में जीना नही छोड़ती थी।
गुंजा और गुंजा की कल्पना दोनों एक दूसरे के बिना रह नही पाते।

धीरे धीरे वो बड़ी हो गईं एक दिन उसकी शादी हो गईं ससुराल चली गईं लेकिन वो अपने कल्पना में अपने भाई से मिलने के नही छोड़ पाई
ससुराल में सास परेशान रहती की आखिर मेरी बहू को कोई बीमारी तो नही है।

एक दिन उसकी सास अपने पति से कहती।

अजी बहू तो काम सब अच्छे से करती है लेकिन ये अकेले अकेले किससे बातें करती है कभी मुस्कुराती कभी रोती कभी बातें करती है।

कहीं भूत प्रेत से तो बात नही करती है।

मुझे तो बड़ा डर लगता है।
कहीं मेरे बेटे की जिंदगी में कोई अशुभ ग्रह तो नही है जो ऐसी पत्नी मिल गई है।

गुंजा के ससुर अरे तुम भी न एक दम से बिना सर पैर की बातें करती हो।

हमारी बहू तो कितनी अच्छी है तुम न ऐसे ही डरते रहती हो।

गुंजा की सास खुद से नही नही मुझे न कुछ करना पड़ेगा हमें तो डर लग रहा है कहीं मेरे बेटे के साथ कोई धोखा तो नही हुआ है।

एक दिन गुंजा की सास बड़े प्यार से गुंजा से बोली जरा चलना तो पास में एक बाबा जी मंदिर में रहते है उनसे आशीर्वाद लेने।

गुंजा ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गईं चलने के लिए ।

सास ने गुंजा से कहा किसी से कुछ बोलना मत नही तो तेरे ससुर जाने नही देंगे।

गुंजा अपने सर को मटका के कहती है ठीक है

दोनों सास बहू बगल के गांव में भूत प्रेत भागने वाले ओझा जी रहते थे उन्हीं के पास पहुँच गए।

गुंजा माँ जी हम तो मंदिर जाने वाले थे न ये तो किसी के घर आ गए है
गुंजा की सास बोली तू बैठ हम अभी आते हैं जाना कहीं मत
वहाँ बहुत भीड़ है ।
तभी उसकी सास जाते हुए किसी से टकरा जाती है तो कहती है देख कर नही चल सकती।

सामने देखती है तो गुंजा की माँ थी।

गुंजा अपनी माँ को देख कर खुश होती है।

गुंजा की माँ अरे समधन जी आप यहाँ क्या कर रही है सब ठीक है न और गुंजा भी साथ में है।

अब गुंजा की सास सोचती है पूछ ही लेती हूँ।

अब समधन जी बात तो कुछ नही है सब ठीक ही है ये जो आपकी बेटी है न वो पता नही अकेले में कभी बात करती है कभी हँसती है कभी रोने लगती है तो मुझे बड़ा डर लगा तो ये गाँव के पास ओझा जी है न तो हम समझें कहीं मेरी बहू को भूत प्रेत का चक्कर तो नही है।
इसलिए आ गईं अब आपसे क्या छिपाना।

गुंजा की माँ सर पकड़ ली।

गुंजा की माँ अरे नही नही समधन जी इसे कुछ नही है ये बढ़िया है।

ये न हमेशा अपनी कल्पना में अपने भाई से बात करते रहती है।

हम बहुत डाटते थे लेकिन ये बैल बुद्धि समझती नही थी।

गुंजा की माँ की बात सुनकर पीछे से गुंजा के ससुर पति सब हंसने लगते हैं गुंजा शरमा कर अपने माँ के पीछे छुप जाती है।

गुंजा की सास हे भगवान आज हम बच गए नही तो ये ओझा तो मुझे लूट ही लेता मेरी कल्पना में रहने वाली बहू के चक्कर में भूत प्रेत का टोना टोटका करके।
सब मुस्कुराते हुए घर आते हैं गुंजा सबसे नजरें बचाकर अपने कमरे में जाकर अपने सर कर हाथ मारते हुए हे भगवान मैं भी न एकदम से बुद्धू ही ठहरी जो सबको परेशान कर दी
अब तौबा तौबा अब मुझे नही कल्पना में खोना है।

समाप्त ।
(बिहार से )