...

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प्रायश्चित
आज दीपक बहुत उदास था। कालेज से सीधा घर आकर सो गया था। मां ने पूछा, बेटा, क्या हुआ।
स्वास्थ्य तो ठीक है न। आज आते ही सो कैसे गये।
दीपक ने कोई जवाब नहीं दिया। शायद सिरदर्द हो रहा होगा, ऐसा सोचकर मां ने सिर दबाना शुरू कर दिया।
रहने दो न...... मम्मी, झुंझुलाकर दीपक ने कहा और मुंह चादर में ढक लिया।
रहरह कर वह यह सोच रहा था कि कालेज में सिम्मी ने उसे अपमानित क्यों किया।कालेज में आज उनका चौथा दिन था। वीना, सिम्मी और भूपेश का भी इसी कालेज में बी.ए.आनर्स ( हिन्दी) में,चयन हुआ था।
"कवि मैथिलीशरण गुप्त का हिन्दी साहित्य को योगदान,"विषय पर चर्चा चल रही थी।
अचानक, सिम्मी को दीपक का कवि को कम आंकना और समकालीन अन्य कवियों को
अधिक मान देना नागवार गुजरा।
उसने कहा कि तुम हिन्दी साहित्य को क्या जानो। अपने पिता के रसूखदार पद और खेलकूद कोटा के कारण कालेज में प्रवेश पा लिया। तुम हिन्दी के बारे में क्या जानो।
तुम तो हकदार ही नहीं थे इस सीट के।
सिम्मी, खेलकूद कोटा और सामान्य कोटा में मात्र एक प्रतिशत का ही तो अंतर है।
रही बात पिता के पद की, तो इस विश्वविद्यालय में किसी को भी अपने पिता के स्टेटस के लिए अलग माप दंड नहीं है। दीपक ने गुस्से में कहा।
फिर किस आधार पर तुम मुझे इस तरह कह रहे हो। सिम्मी अब कुछ भी कहा तो.....उसका क्रोध अब तेज़ हो गया था।
गुस्से से भरा हुआ वह...