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स्वप्न से भ्रष्टाचार की ओर
अभी भोर होने में कुछ देर बाकी थी, यद्यपि भोर होने से पहले ही घर में माँ की पायल की आवाज और आरती का स्वर सोए हुए परिवार के सभी सदस्यों के कानों में पहुंचना शुरू हो गया था | कुछ देर बाद हड़बड़ाहट में अरुण की नींद टूटी और उसकी नज़र सीधी दीवार घड़ी पर जा कर अटक गई ,तब तक सूर्योदय की हल्की अरुणिमा भी फैलने लगी थी |

उसने कमरे से बाहर आकर देखा तो पिताजी बरामदे में कुर्सी डालकर बैठे क्यारी में दाना चुगती चिड़ियों को देख रहे थे कि तभी माँ ने अरुण को आवाज लगाई | ऐ अरुण, पैकिंग ठीक से कर लिए हो ना ?देखना कोई सामान छूट न जाए |

उसने पलटकर माँ की ओर देखा | उसके चेहरे पर उत्साह और चिन्ता का मिश्रित भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था | कुछ ही देर में उसके मन की गति ट्रेन की गति से भी अधिक हो गयी थी और वह बचपन में देखे गए उस सपने में खोने लगा था ,जिसके लिए वह अपने सपनों की ट्रेन पकड़ने जा रहा था| इतने में घर के सामने एक मोटरसाइकिल आकर रुकी जिसकी आवाज सुनकर पिताजी भी घर की चौखट पर आ खड़े हुए | मोटरसाइकिल से उतरते दोनों व्यक्तियों को ध्यानपूर्वक देखने के बाद बाबूजी मुस्कुराते हुए बाहर आये और उनमें से एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति को गले लगा लिये | आँखों में बहते आँसू और आलिंगन से ऐसा लगने लगा था ,जैसे ये दोनों कुम्भ के मेले में बिछड़े आज मिल गए हो | परन्तु माँ...