बेटी का सुख ( कहानी)
रात का अँधियारा दूर होने लगा सुबह का उजाला थोड़ा थोड़ा निकलने लगा । जपानी पार्क की पार्किंग मे एक बड़ी सी कार आकर रुकी । कार शायद बी एम डबलू थी । ड्राइवर ने कार खड़ी की और मालिक की तरफ कार के दरवाजे को खोलने के लिए दौड़ा । जैसे ही कार का दरवाजा खोला उसने उनसे हाथ की छड़ी पकड़ ली और बाहर निकलने के लिये उनकी मदद करने लगा। यह शहर के जाने माने जौहरी धनीराम जी थे जिनको चलने के लिए आज एक लाठी के सहारे की जरूरत थी । दो हफ्ते पहले तक वो रोज सुबह सैर करने बगीचे आते । फटाफट बिना किसी सहारे के कार से उतर कर खूब सैर करते और बाद मे खुशी-खुशी अपने घर लौट जाते । उनकी उम्र 65 वष॔ थी । दो ही हफ्ते मे ऐसा क्या हुआ कि वह आदमी अपने आप को उसकी उम्र के बीस साल बड़ा महसूस करने लगा जैसे इन चन्द रोज मे वो 85 के हो गये हो । उनहोंने टहलना शुरू किया वो भी बड़े बेदिल होकर । यह क्या बगीचे का आधा चक्कर भी नही लगाया था कि वो थककर नजदीक के एक बेंच पर बैठ गये । बेंच के दूसरे किनारे पर एक आम आदमी बैठा था । जी हाँ वो आम आदमी ही था कपड़ों से , उसकी साधरण सी चप्पल , पोशाक मे उसने एक सूती कुर्ता पैजामा पहन रखा था । उम्र मे वो करीब पैंतालीस का था लेकिन अपनी उम्र मे तीस वर्ष अधिक का लग रहा था । वो पैदल चल कर आया था जाहिर है जिंदगी के थपेडों ने उसे उसकी उम्र मे तीस वर्षो का इज़ाफा कर...