जीवन सिर्फ अपना नहीं (last part )
NGO में अपनी सेवा देते हुए 2 महीने कैसे बीत गए साहिल को पता नहीं चला |
उसे उन बच्चों से लगाव हो गया था, उसे उन्हें देखकर हिम्मत मिल रही थी कि शारीरिक व मानसिक रूप से दिव्यांग होते हुए भी बच्चों के अंदर पढ़ने का , कुछ नया सिखने का कितना जज़्बा हैँ |
बच्चे भी उस से घुल -मिल गए थे और ऋषिकांत जी वह की बड़े भाई की तरह आदर करता था |
"मैं सोच रहा हूँ फाइनल...
उसे उन बच्चों से लगाव हो गया था, उसे उन्हें देखकर हिम्मत मिल रही थी कि शारीरिक व मानसिक रूप से दिव्यांग होते हुए भी बच्चों के अंदर पढ़ने का , कुछ नया सिखने का कितना जज़्बा हैँ |
बच्चे भी उस से घुल -मिल गए थे और ऋषिकांत जी वह की बड़े भाई की तरह आदर करता था |
"मैं सोच रहा हूँ फाइनल...