खाली हाथ
लघु कहानी
खाली हाथ
रोजाना की तरह समीर ने गाड़ी बंद की , मैन गेट खोला ,गाड़ी अंदर पार्क की , दालान में बैठे बाबूजी की और होले से मुस्करा कर देखा ,बाबूजी ने भी उसके एक खाली हाथ और दूसरे हाथ में ऑफिस बैग को देखा , पास में गया और पूछा कैसे हो ? सब ठीक तो है ना ?
हाँ बेटा !
और तू ?
अच्छा हूँ !!
पिछले लगभग पाँच वर्षो से यही क्रम चल रहा था , जब से माँ उनका साथ सदा के लिए छोड़ कर गई थी।
शाम को जब समीर ऑफिस से लौटता तो बाबूजी उसे दालान में रखी कुर्सी पर बैठे मिलते , लगता जैसे वे समीर की ही प्रतीक्षा कर रहे हो , समीर को वे एक मासूम बच्चे की तरह गेट खुलने की ही...
खाली हाथ
रोजाना की तरह समीर ने गाड़ी बंद की , मैन गेट खोला ,गाड़ी अंदर पार्क की , दालान में बैठे बाबूजी की और होले से मुस्करा कर देखा ,बाबूजी ने भी उसके एक खाली हाथ और दूसरे हाथ में ऑफिस बैग को देखा , पास में गया और पूछा कैसे हो ? सब ठीक तो है ना ?
हाँ बेटा !
और तू ?
अच्छा हूँ !!
पिछले लगभग पाँच वर्षो से यही क्रम चल रहा था , जब से माँ उनका साथ सदा के लिए छोड़ कर गई थी।
शाम को जब समीर ऑफिस से लौटता तो बाबूजी उसे दालान में रखी कुर्सी पर बैठे मिलते , लगता जैसे वे समीर की ही प्रतीक्षा कर रहे हो , समीर को वे एक मासूम बच्चे की तरह गेट खुलने की ही...