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“पुनर्विवाह”
नीतू की दिनचर्या उसी तरह थी जैसे प्रतिदिन हुआ करती थी। रोज़ सुबह उठना, आईने में अपने को देखना फिर बाकी के कामों पर लग जाना। वही नीरसता वही उदासीनता न चेहरे पर कोई खुशी न कोई हँसी। ऐसा नहीं था कि नीतू पहले से ऐसी थी बल्कि वो बड़ी खुशमिजाज हुआ करती थी। उसकी शादी भी एक ऐसे हँसते-खेलते परिवार में हुई थी कि उसे मायके की याद भी कभी-कभार आती। नीतू का पति भी उसे बहुत खुश रखता था। अपने संसार में वो बड़ी सुखी थी। लेकिन उसकी ये खुशी नियति से देखी नहीं गई। नीतू अपने पति के साथ जब गोवा की सैर पर गई हुई थी। वहाँ वे लोग बड़े मज़े कर रहे थे। नीतू अपनी हर तस्वीरों को परिवार में तुरंत भेज देती और वे लोग नीतू की इस खुशी के भागीदार हो जाते। एक दिन नीतू को वहाँ समंदर किनारे सैर पर जाना था। उसे बचपन से पानी से डर लगता था इसलिए उसने किनारे पर ही रहने का पति से वादा कर दिया था। लेकिन नीतू के पति मनमौजी इंसान था। वहाँ के लोगों की मदद से वह समुद्र में गोता लगाने चल दिया। नीतू को क्या पता था कि उसकी ये आखिरी मुलाकात होगी उसके पति के साथ। नीतू तट पर ही रुककर पति के लौटने का इंतजार करती रही। काफी ज़्यादा समय बीतने के बाद उसे चिंता सताने लगी कि आखिर वो कहाँ रह गए। समुद्र में लहरें बढ़ने लगी थी। नीतू घबराई हुई कोस्टल गार्ड के पास गई और उनसे मदद की अपील की। तटरक्षक बल की एक टुकड़ी चल पड़ी समुद्र की ओर। नीतू के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। और अंत में वही हुआ जिसका उसे डर था। सामने तटरक्षक बल की टुकड़ी लौटती हुई दिखाई दी लेकिन साथ में उसके पति का बेजान सा शरीर। नीतू के पैरों तले जमीन खिसक गई। वो फूट-फूटकर रोने लगी। नीतू के ससुराल में फोन किया गया और नीतू ने सारा किस्सा रोते-रोते सुनाया। इस घटना को भूलाने में नीतू को कई साल लग गए।
अब नीतू अपने माता-पिता के यहाँ रहने लगी थी। एक स्कूल में उसने टीचर की नौकरी पा ली थी। बस वहीं आना-जाना होता था। स्कूल में वहीं एक सहयोगी अमित सिंह भी थे जो विज्ञान के शिक्षक थे। वो नीतू को पहली ही बार में अपना दिल दे बैठे थे। परंतु उसकी असलियत से अंजान थे। नीतू कई बार उन्हें अनदेखा कर चुकी थी लेकिन एक दिन हद हो गई। अमित अपना लेक्चर लेकर स्टाफ रूम में आये। नीतू वहाँ अकेली बैठी हुई थी। मौका पाकर उन्होंने नीतू से कहीं बाहर मिलने के लिए आग्रह किया। नीतू ने कई बार इंकार कर दिया लेकिन वो अमित की इज़्ज़त किया करती थी इसलिए मना नहीं कर पाई। मिलने का दिन निश्चित हुआ। नीतू इतवार के दिन एक होटल के खुले आरामदेह कुर्सी पर जाकर बैठ गई। अमित वहाँ पहले से ही मौजूद थे। उन्होंने जैसे ही नीतू को आते देखा अपने हाथ में अंगूठी के डिब्बे को छुपा लिया। दोनों में बातचीत शुरू हुई। अमित इतने उतावले थे कि तुरंत उन्होंने नीतू को अंगूठी दिखाकर शादी का प्रस्ताव रख दिया। नीतू अकस्मात ये सब देखकर रोने लगी। अमित को लगा उन्होंने ज़्यादती कर दी शायद। उन्होंने तुरंत नीतू से माफी माँगी और उससे रोने का कारण पूछा। नीतू ने अपना अतीत धीरे-धीरे अमित के सामने रख दिया। अमित को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि नीतू एक विधवा है।
कुछ देर बाद एक खाली चुप्पी दोनों के बीच छाई रही। फिर अमित ने चुप्पी तोड़ते हुए अपने आप को संभाला। नीतू से उन्होंने इन सबके बावजूद शादी करने का प्रस्ताव रखा। नीतू उस समय तो कुछ नहीं कह पाई। उसने अपने माता-पिता से इस बात पर अमित से बात करने के लिए कहा। अमित ने बात मान ली। कुल दो हफ्तों बाद अमित नीतू के घर आए। नीतू अपने माता-पिता को इस बारे में नहीं बता सकी। अमित को देखकर नीतू के पिता चकित हो गए। अमित ने अपनी पहचान बताई तब उन्हें बैठने के लिए कहकर नीतू के पिता उसे बुलाने गए। नीतू ने अमित को देखा और अंदर चुपचाप चली गई। अमित समझ गए कि अभी उनके बारे में यहाँ किसी को कुछ पता नहीं है। फिर अमित ने नीतू के माता-पिता से बड़े आदर के साथ नीतू का हाथ माँगने का प्रयास किया। नीतू के माता-पिता चकित भी हुए और अंदर ही अंदर खुश भी। उन्होंने नीतू से इसके बारे में राय जानना जरूरी समझा। नीतू की माता ने अंदर जाकर उसे इस बात के लिए मना ही लिया। अमित के दिल की धड़कनें बढ़ती ही जा रही थीं। जैसे ही उन्होंने नीतू के साथ उसकी माता को आते देखा वो चौंक गए। नीतू सामने आकर बैठ गई। और अमित ने नीतू से उसका हाथ माँगा तो उसने बड़ी सरलता से एक छोटी सी मुस्कान से सब कह दिया।
घर में खुशी एक बार फिर दस्तक देने आ गई। और इस तरह नीतू का पुनर्विवाह बड़ी खुशी से हुआ।
© ढलती_साँझ