सहानुभूति की अनुभूति
मैं जब भी किसी ऐसे व्यक्ति लोगों को देखतां हूं जो बेसहारा हो,लाचार हो,बेबस हो तकलीफ़ में हो तो मुझे देखा नहीं जाता है, हमेशा कोशिश करता हूं की मैं उसे उस परेशानी को दूर कर पाऊं,और जब वे तकलीफ़ में होते तो मानों मैं खुद उस बेबस लाचार व्यक्ति के रूप में स्वयं को देखता हूं इंसानियत केवल इंसानों में और इंसानों के लिए नहीं होता है, मैं पशु पक्षियों को भी मुसीबत में देखता हूं और उसे परेशानी निकालने लग जाता हूं ऐसा ही हुआ था, की मैं रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ रहा था, की मैने देखा एक व्यक्ति जो की वे ठीक से नहीं चल पा रहा था और उनके पैरों से खून निकल रहा था, मैने उसे तुरंत रोका और कहां की आप रुक जाए मैं कुछ करता हूं तो मैंने अपने बैग के अंदर झांका और छोटी पट्टी ढूंढने लगा शायद मिल जाए मैं अपना रुमाल भी फाड़ने को तैयार था लेकिन छोटी पट्टी बेहतर होता है, और आखिरकार वो पट्टी मिल ही गई और मैने अपने बैग में से छोटी पट्टी ( Handiplast) निकाल कर उसे लगा दिया और उनसे कहा अपना ख्याल रखिएगा और डॉक्टर से एक टेटनस की सुई ले लीजिएगा और फिर उसे जाने दिया, उस समय इस दृश्य को चुप ऐसे देख रहे थे मानो कोई खेल तमाशा चल रहा हो, फिर मैं भी वहां से चला गया।
काश उन लोगो को भी सहानुभूति की अनुभूति होती, हालांकि कुछ लड़कों ने पट्टी बांधने में मदद भी की, और बाकी के लोग बाद देख रहे थे, हालांकि ये समस्या कई कारणों से हो सकती है उन्हे डर रहता है की अगर वे घायलों का मदद करेंगे तो उस पर पुलिस के द्वारा कार्रवाई की जायेगी या कुछ लोग...
काश उन लोगो को भी सहानुभूति की अनुभूति होती, हालांकि कुछ लड़कों ने पट्टी बांधने में मदद भी की, और बाकी के लोग बाद देख रहे थे, हालांकि ये समस्या कई कारणों से हो सकती है उन्हे डर रहता है की अगर वे घायलों का मदद करेंगे तो उस पर पुलिस के द्वारा कार्रवाई की जायेगी या कुछ लोग...