...

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सफ़र.... ज़िंदगी का
सफ़र ज़िंदगी का लिखूँ तो शायद रुकना नामुमकिन हो
जो बीत गया अब लगता है वही बेहतरीन था
अब जो बीत रहा है बिताया नहीं जा रहा है
इस कठिन दौर से गुजरना ठीक मुश्किल है उस तरह
जिस तरह गहरी नदी हो सामने
और पास न हो कोई सहारा कोई मंज़िल जिस तरह
सारी मुसीबतें जैसे मेरे हिस्से का गईं
मेरा रास्ता जैसे आसान पा गईं
अब दूर उनसे होना लगता जैसे नामुमकिन सा है
हज़ार कोशिशें नाकाम हर इलाज अब मुश्किल सा है
अपना भरोसा टूटा तब दूसरों पर कर लिया
सोचकर शायद ये हाल ए दिल बदल लिया
पर कट न सका कोई बेगहरत लम्हा मेरा
मैं सम्भलता गया तो दर्द पहले से ज़्यादा बढ़ता गया
ये भी बड़ी मुश्किल है कि तमन्ना न भी हो
तो मुझे जीना है
मानो ज़हर भरी शीशी हो और हर रोज़ मुझको पीना है
हिदायतों के हिसाब से फिर भी खड़ी रही हूं मैं
पर कब तलक यूँ हर रोज़ मरकर फिर भी जी रही हूँ मैं
दिल,आत्मा गवाही कर गए हैं
बस शरीर को चलाओ तुम
ये कह चले हैं कर विदा
अब तुम्हारे रिश्ते निभाओ तुम
अब तंग मुझमें मैं खुद भी नहीं
अब ज़िंदगी को ज़्यादा पास से जान लिया
सब को माना अपना पर
मोके में न कोई था मेरा न किसी ने साथ दिया
फ़र्ज़,हक़,ज़िम्मेदारी सारी मेरे हिसाब आ गई
किसी की ज़िंदगी किसी की सांसें सब मेरे हाथ आ गईं
उन्हें जीतकर भी अंत देखो
मेरा हाथ बस हार आ गई
बहुत मायूस कर देती कभी कभी ज़िंदगी
न चाह न राह न मोह लगता है
सच कहूं तो अब मुझे अंधेरों में बसने का शौख लगता है
बहुत कठिन है दोस्त
उस जगह,उस डगर चलना
जहाँ मुश्किल भी लगे जीना
वहाँ हर रोज़ हर कदम रखना......


© quotes_by_shiddat@insta