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सपना -१
श्याम का दिन था, छोटे - छोटे बच्चे खेल रहे थे, बढ़े- बुज़ुर्ग भी टहल रहे थे। में अपने मकान के बाहर अपने तीन भाईयों का इंतजार कर रही थी। आज हमारे सुसाईटी में पैराग्लाइडिंग होने वाली है। मेरे जो तीन भाई हैं उन्हें पैराग्लाइडिंग बहुत पसंद हैं। मैंने सोचा कि क्यों न उन्हें भी बुला लूं। वे आए और यह सुनकर वह बहुत खुश हुऐ। हम लोगों ने बिना किसी समय बर्बाद किए पैराग्लाइडिंग की ओर अपने कदम बढ़ाये। रास्ते में उन्होंने मुझसे पूछा कि भला शहर में पैराग्लाइडिंग कैसे हो सकती है। मैंने उन्हें बताया कि मैं खुद नहीं जानती। पर में यह जानती हूं कि तुम्हें पैराग्लाइडिंग बहुत पसंद हैं तो मैंने सोचा कि क्यों न तुम लोगों को भी बुला लूं। यह सुनकर वह बहुत खुश हुए। आखिर में हम अपनी मंजिल तक पहुंच गए। लाइन बहुत लंबी थी पर हम सबने अपनी बारी आने का इंतजार किया। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं भी कर रही हूं ना उनके साथ, मैंने मना कर दिया क्योंकि मुझे ऊंचाई से डर लगता था। मेरे भाईयों को मोका मिला ही नहीं की मेरी टांग खींचने के सिवाय वे उस वक्त कर भी क्या सकते थे। मैंने अपने इन भाईयों से खुद से ज़्यादा प्यार किया है, इनको अगर एक खरोच भी लगजाऐ तो मैं सारा संसार सर पर चड़ा लूं। तभ भी मौसम में कोई बदलाव नहीं था। सुहानी श्याम थी। बहुत भीड़ थी वहां पर, आखिर मे हमारा नम्बर आया और वह तीन एक-एक कर कर गए। सेफ्टी के लिए उन पैराग्लाइडिंग वाले लोगों ने एक माईक फिट किया हुआ था। दो भाई अभी भी नीचे मैरे साथ ही थे, फोटो खींचने लगे। अचानक से माईक से आवाज़ आई कि उसे वापस नीचे आना है पर उन लोगों ने कहां कि डरो मत कुछ नहीं होगा, पर मेरा भाई माना नहीं। आखिर में उसकी ज़िद को मानने के बाद उन्होंने अपने आदमियों से बोला कि उसे वापस नीचे लाया जाए। वो लोग निकलने ही वाले थे कि अचानक से मौसम बहुत ख़राब हो गया। आंधी आने लगी, आंधी कि रफ्तार बढ़ती जा रही थी। मैरा भाई अभी भी वहीं पर था। बिजली गिरने लगी। सब लोग डर के मारे वहां से भाग गए, पर मुझे उसकी चिंता हो रही थी। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। मैं वहीं खड़ी रह गई पर मेरे बाकी के दो भाईयों ने मुझे वहां से खींचके लेजाने लगे। उसी वक्त दोनों आंधी और बिजली कि रोशनी बढ़ने लगी और मेरी हालत में कोई बदलाव नहीं था। में आसमान की तरफ उसे देखती रही और उसकी चीखें मेरे कानों में गूंजती रही। मौसम का ऐसा रूप आजतक किसी ने देखा नहीं होगा। बिजली की आक्रमण सीधा उस पर पड़ा और.....और......वो मुझे......
एक श्रण बाद मेरी आंखें खुली तो तीनों भाईयों वहां मोजूद थे और हम सब बाहर नहीं मेरे घर पर थे। जान-मे-जान आई। मुझे नींद में रोता देख उन्होंने मुझे उठा दिया। मैं भागकर खिड़की के पास गई और देखा कि बाहर का माहौल वैसा है जैसा सपने में देखा था या नहीं, नहीं था। मेरे भाईयों ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ तुझे अब, बिना कोई जवाब दिए मेंने उन्हें गले लगा लिया, और कहा कुछ नहीं बस सपना था।