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गुमसुम सा लड़का
था एक गुमसुम सा लड़का
कौन जानता था उसकी हकीकत
कोई दोस्त नहीं था उसका
जहाँ भी वो जाता था पागल समझते थे उसे सब
उसके आत्मविश्वास की तो धज्जियां उड़ चुकी थी
माँ बाप ये सोचके कुछ बोलते नहीं थे कि ये तो शुरू से ही एसा है
पर कोई समझने वाला नहीं था कि अंदर उसके क्या चल रहा था
ज्यादा कोई बात करता नहीं था उससे
क्योंकि दुनिया तो मतलबी है
जहाँ कुछ मतलब निकलता है वहाँ ही जाती है
उसका कोई दोस्त नहीं हुआ तो उसने किताबों को अपना दोस्त बना लिया
वो सिर्फ पढ़ता था और कभी पढ़ते हुए मुस्करा
भी देता था
लोग तो उसे पागल समझने लगे थे कि पढ़ते हुए हंसने लगता है
उसकी दोस्त किताबे उसे बहुत आगे तक ले जाती है
आगे जाके उसका सिर्फ एक साथी पढ़ाई
जिसकी वजह से सिर्फ उसी की वजह से लोग पास आने लगते है उसके
क्योंकि दुनिया तो मतलबी है
उन्हीं लोगों मैं से एक थी उम्मीद
जिसे वो अपना समझने लगता है
और उससे ही बातें करने लगता है
और जो बचपन से किसी से नहीं कहा
वो सब शेयर करने लगा
पर उसे कहाँ पता था
की ये उम्मीद सिर्फ उसकी एक दोस्त की वजह से है जो हमेशा उसके साथ रहती थी
उस उम्मीद की तो बहुत सहारे थे
वो तो आगे बढ़ने का जरिया था
पर वो पागल बेचारा कहाँ जनता था ये सब
उसके लिए तो सब कुछ थी वो
और एक दिन आया
उसकी जरूरत खत्म हो गई
और वो उम्मीद भी चली गई
अपने सहारे के पास
वो लड़का तो जैसे पहले से भी अकेला हो गया था

© Abhishek mishra