...

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लोग कैसे
आज के वक्त में अजीब चलन है एक
हर किसी को कुछ कहना है,
और दुख की बात ये है की
किसी को भी सुनना नही।
आखिर ऐसे कैसे हो गए हैं हम
किसी और के दुख जानने समझने का हमारे पास जरा सा भी वक्त नही है।
एक और अजीब सा चलन हैं,अगर कोई सुनने को भी तैयार है तो आपके दर्द को समझने से पहले ही आपको जज करने को तैयार है।
उसको नही फर्क पड़ता आप पर क्या बीत रही।
इसे क्या कहेंगे इतनी निष्टुरता कहां से ला रहे हैं लोग अपने अंदर।
क्या ऐसा नहीं हो सकता की अगर आप किसी से पूछो कैसे हो तो इंतजार करो उसके जवाब का, वो जवाब “ठीक नही हूं’’ हो सकता है ना?आप पहले से ठीक हूं वाला जवाब मत सोचो।
और आप इतने सहज बनो की कोई आपसे कह सके सच।
वो सच जो वो जी रहा है।
किसी से मिलो तो उसकी मुस्कान को देख जलने की वजाय उसकी हिम्मत की दाद दो।
वो लाखों दुख तकलीफ सीने में दबाए हसने की हिम्मत रखता है।
ये बड़ी बात है।
हर कोई जी रहा है अपने हिस्से की तकलीफ।
और ये सच है।
आज के वक्त में आप जिसकी जिंदगी देख कर रस्क खा रहे होगे जरूरी नहीं वो उतनी सुहानी है जितनी आपको मालूम पड़ रही है।
पर थोड़ा इंसानियत रखीये अपने अंदर और थोड़ा जिंदा रहिए।
खुश रहिए मस्त रहिए और हंसते हसाते रहिए।

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