बड़ी हवेली (नाइट इन लंदन - 5)
रात होते ही जहाज पर खामोशी छा जाती थी, केवल कुछ गिने चुने अधिकारियों को ही नाइट ड्यूटी करनी पड़ती थी खासकर वो जिन्हें जहाज चलाना और रात में निगरानी रखना था।
जहाज काफी बड़ा था और उसे कंट्रोल करना एक बड़ी बात थी जिसे मर्चेंट नेवी का मंझे हुआ युवा दल चला रहा था। कैप्टन अपने कैबिन से निकलकर बीच बीच में हवा का बहाव और दिशा का पता पूछ वापस अपने कैबिन में चले जाते थे।
इसी बीच एक अनजान साया डेक से नीचे उतर अंदर की लॉबी को पार करते हुए पीछे की सीढ़ी से उतरकर नीचे लगेज डिपार्टमेंट के अंदर प्रवेश करता है, चारों तरफ़ अंधेरा फैला हुआ था, कुछ भी देख पाना नामुमकिन था सिवाय कमांडर के ताबूत की दरारों से निकलती तेज लाल रोशनी को जो उस अनजान शख्स को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। वह शख्स उस संदूक के पास पहुंचा पर उसपर जंजीर बंधी हुई थी जिस पर मोटा सा ताला लगा जो उस बड़ी जंजीर से ताबूत को बांधे हुए था। वो अनजान शख्स अपने जैकेट की जेब से एक स्टील का हेयर पिन निकलता है, जिसकी सहायता से वह ताला खोल ताबूत को उन जंजीरों से मुक्त कर देता है, पर तभी अचानक एक झटके में ताबूत खुलता है और कमांडर बड़ी फुर्ती से उस अनजान शख्स का गला दबोच लेता है और हवा में ऊपर की ओर ले जाता है , फिर थोड़ी दूरी पर रुक जाता। कमांडर अपने सिर को बाएं हाथ में पकड़े हुए था फिर धीरे धीरे अपनी खोपड़ी को धड़ से जोड़ता है, एक तेज़ प्रकाश उस अनजान शख्स पर पड़ता है तो उसका चेहरा दिखाई देता है और वह कोई दूसरा नहीं बल्कि अजीत था, जिसने जिज्ञासा में ताबूत खोल दिया था, कमांडर इतनी ज़ोर से उसका गला घोंट रहा था कि उसकी चीख़ निकलना मुश्किल था लेकिन तभी कमांडर अपने बाएं हाथ को उसके पेट के अंदर घुसा देता है जिससे उसकी खतरनाक चीख़ निकल पड़ती है और अचानक ही तनवीर की नींद खुल जाती है , देखा तो सवेरा हो चुका था।
तनवीर और अरुण तैयार होकर डेक पर पहुंच जाते हैं सुबह की परेड के लिए, उसके बाद नाश्ता कर उन्हें सफ़ाई का काम फ़िर से मिलता है, दोनों सफ़ाई में लगे थे, तभी अचानक अरुण चिल्लाता है "अमां तनवीर वो देखो शार्क की छोटी बहन डॉलफिन, देखो वहां कैसे झुण्ड में छलाँग मार रहीं हैं सब, कितना सुन्दर दृश्य है ", अरुण अपनी उँगली से उनके झुंड की तरफ इशारा कर के तनवीर को दिखाता है। तनवीर भी ये मनोरम दृश्य देखकर काफ़ी ख़ुश होता है।
धीरे धीरे दिन बीतता है और उनका काम भी समाप्त हो गया था, दोनों शावर लेने के बाद अपने कैबिन में आराम कर रहे थे। शाम ढलते ही उनकी महफिल दोबारा जमती है, उसके बाद दोनों डाइनिंग हॉल की तरफ़ निकल पड़ते हैं। खाने में अब भी काफ़ी समय था इसलिए सभी टेबल पर बैठ अपना मनोरंजन कर रहे थे, कुछ ताश के...
जहाज काफी बड़ा था और उसे कंट्रोल करना एक बड़ी बात थी जिसे मर्चेंट नेवी का मंझे हुआ युवा दल चला रहा था। कैप्टन अपने कैबिन से निकलकर बीच बीच में हवा का बहाव और दिशा का पता पूछ वापस अपने कैबिन में चले जाते थे।
इसी बीच एक अनजान साया डेक से नीचे उतर अंदर की लॉबी को पार करते हुए पीछे की सीढ़ी से उतरकर नीचे लगेज डिपार्टमेंट के अंदर प्रवेश करता है, चारों तरफ़ अंधेरा फैला हुआ था, कुछ भी देख पाना नामुमकिन था सिवाय कमांडर के ताबूत की दरारों से निकलती तेज लाल रोशनी को जो उस अनजान शख्स को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। वह शख्स उस संदूक के पास पहुंचा पर उसपर जंजीर बंधी हुई थी जिस पर मोटा सा ताला लगा जो उस बड़ी जंजीर से ताबूत को बांधे हुए था। वो अनजान शख्स अपने जैकेट की जेब से एक स्टील का हेयर पिन निकलता है, जिसकी सहायता से वह ताला खोल ताबूत को उन जंजीरों से मुक्त कर देता है, पर तभी अचानक एक झटके में ताबूत खुलता है और कमांडर बड़ी फुर्ती से उस अनजान शख्स का गला दबोच लेता है और हवा में ऊपर की ओर ले जाता है , फिर थोड़ी दूरी पर रुक जाता। कमांडर अपने सिर को बाएं हाथ में पकड़े हुए था फिर धीरे धीरे अपनी खोपड़ी को धड़ से जोड़ता है, एक तेज़ प्रकाश उस अनजान शख्स पर पड़ता है तो उसका चेहरा दिखाई देता है और वह कोई दूसरा नहीं बल्कि अजीत था, जिसने जिज्ञासा में ताबूत खोल दिया था, कमांडर इतनी ज़ोर से उसका गला घोंट रहा था कि उसकी चीख़ निकलना मुश्किल था लेकिन तभी कमांडर अपने बाएं हाथ को उसके पेट के अंदर घुसा देता है जिससे उसकी खतरनाक चीख़ निकल पड़ती है और अचानक ही तनवीर की नींद खुल जाती है , देखा तो सवेरा हो चुका था।
तनवीर और अरुण तैयार होकर डेक पर पहुंच जाते हैं सुबह की परेड के लिए, उसके बाद नाश्ता कर उन्हें सफ़ाई का काम फ़िर से मिलता है, दोनों सफ़ाई में लगे थे, तभी अचानक अरुण चिल्लाता है "अमां तनवीर वो देखो शार्क की छोटी बहन डॉलफिन, देखो वहां कैसे झुण्ड में छलाँग मार रहीं हैं सब, कितना सुन्दर दृश्य है ", अरुण अपनी उँगली से उनके झुंड की तरफ इशारा कर के तनवीर को दिखाता है। तनवीर भी ये मनोरम दृश्य देखकर काफ़ी ख़ुश होता है।
धीरे धीरे दिन बीतता है और उनका काम भी समाप्त हो गया था, दोनों शावर लेने के बाद अपने कैबिन में आराम कर रहे थे। शाम ढलते ही उनकी महफिल दोबारा जमती है, उसके बाद दोनों डाइनिंग हॉल की तरफ़ निकल पड़ते हैं। खाने में अब भी काफ़ी समय था इसलिए सभी टेबल पर बैठ अपना मनोरंजन कर रहे थे, कुछ ताश के...