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वो लड़की
आज आकाश पर बस अंधेरा ही अंधेरा था , न तारे दिखते थे न चंद्रमा , उसका मन तो मानो घोर निराशा के अन्धकार में डूब गया था ।
हाथों में चाय की प्याली लिए वो आसमान को निहार रही थी , तभी एक बूंद उसके चेहरे पर पड़ी , उसे लगा शायद बारिश होने वाली है ,मगर वो अंदर नहीं जाना चाहती थी ।कुछ ही देर में आसमान से बूंदा बांदी होने लगी , और वो यूं भीगती रही जैसे ठंड की उस रात में उसे भीगने का कोई डर ही न हो ।नहीं जानती थी कि जिस अनजान नगर को वो अपना बनाने चली थी वो उसका अस्तित्व ही समाप्त कर देगा ।
कहने को सब अपने थे मगर दुख बांटने को कोई नहीं था , इस मायानगरी की चकाचौंध उसे खींच लाई थी उस मंझधार की ओर जहां से जीवन की कश्ती के लिए आगे कोई राह नहीं थी ।
वो भीगती रही न जाने कब तक ,की दरवाजे की दस्तक से उसकी तंद्रा टूटी,और वो दरवाजे की ओर भागी ।
रमेश की आवाज उसके कानों में पड़ी ,चिल्लाते हुए ,और उसने लपककर दरवाजा खोला ।हरबार की तरह इस बार भी पूरी तरह से नशे में धुत्त ।आते ही उस पर झपट पड़ा ,और उसे नशे में गालियां देते हुए , पीटता गया ,जब तक खुद बेहोश होकर गिर नहीं पड़ा ।रोज़ की यही कहानी थी , रजनी के जीवन की ।
अपने माता पिता को छोड़कर वो मुंबई में अनगिनत सपने लेकर रहने आयी थी।
उसे सबके चेहरे याद आते थे जिन्हे वो छोड़ कर अपनी दुनिया बनाने चली थी ।
तभी रमेश के संपर्क में ‌आई , जिसने ‌उसे सुनहरे सपने दिखाए और कैद कर लिया ।
उसके सपने तो सपने ही रह गए मगर रमेशके सपने जरूर पूरे हो गए ।घर में मुफ्त की बाई मिल गई जिसे वो अपने नापाक इरादों में इस्तेमाल कर अपने पेट और नशे की आग बुझाता था ।रजनी अधमरी सी धरती पर पड़ी थी, हिम्मत बटोर कर किसी तरह रमेश को उठाया और उसे पलंग तक ले गई और लेटाया वरना सुबह फिर आफत आ जाती ।
अगली सुबह रमेश उठा और नहा धो कर उसने नाश्ता किया।फिर जैसे ही जाने को हुआ तो वो बोली ,"कुछ पैसे दे कर जाओ,
कुछ कपड़े लेने है ।"रमेश सुनते ही आगबबूला हो उठा और उसे मारने को लपका ,वो उसके पैरों में गिर पड़ी और माफी मांगी ।पैर से उसे धकेलते हुए बोला ,"जो है उसमे खुश रह, समझी , आज कुछ मेहमान आएंगे ,तैयार रहना ।"
वो रुआंसी सी होकर बोली ,"जी , ठीक है ।"
पूरा दिन उसने काम किया खाना तैयार किया ,उन भेड़ियों के लिए जो उसे नोचने आने वाले थे ।
आखिरकार दरवाजे पर दस्तक हुई और वो डरती हुई दरवाजा खोलने दौड़ी ।खोलते ही सामने उसे वो इंसानी भेड़िए दिखे , जो खून पीने को मानो आतुर थे ।
रमेश ने हुक्म किया ,"ऐ , आंखे फाड़ कर क्या देख रही है ,चखना और शराब परोस ।"वो अंदर गई और हर बार की तरह सुंदर कांच के प्यालों में शराब ले आई ।
उनकी नजरें मानो उसे नष्ट करने को आतुर थीं ।
वो प्यालों पर प्याले पीते जाते थे और वो डरी सहमी परोसती जाती थी ।
आखिरकार रमेश लड़खड़ा कर गिर पड़ा, और उसे उठाते उठाते दूसरा शख्स भी ।
रजनी ने भी उठाने की भरसक कोशिश की मगर आज उसकी किस्मत अच्छी थी , वो उठे नहीं ।वो चुप चाप सो गई और सुबह जब नींद गई तो उसने देखा उनकी सांसें बंद हो चुकी थीं ।
उसने तत्काल पुलिस को फोन लगाया और कहा ,"साहब ,मेरा आदमी और उसका दोस्त उठ नहीं रहे ,आकर देखिए जरा ।रात को शराब पी कर आए थे , तभी से बेहोश है ।"
उसने रात के ग्लास साफ किए और सैनिटाइजर की खाली बोतलों को बाहर फेंकने चली गई ।



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