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वो लड़की
आज आकाश पर बस अंधेरा ही अंधेरा था , न तारे दिखते थे न चंद्रमा , उसका मन तो मानो घोर निराशा के अन्धकार में डूब गया था ।
हाथों में चाय की प्याली लिए वो आसमान को निहार रही थी , तभी एक बूंद उसके चेहरे पर पड़ी , उसे लगा शायद बारिश होने वाली है ,मगर वो अंदर नहीं जाना चाहती थी ।कुछ ही देर में आसमान से बूंदा बांदी होने लगी , और वो यूं भीगती रही जैसे ठंड की उस रात में उसे भीगने का कोई डर ही न हो ।नहीं जानती थी कि जिस अनजान नगर को वो अपना बनाने चली थी वो उसका अस्तित्व ही समाप्त कर देगा ।
कहने को सब अपने थे मगर दुख बांटने को कोई नहीं था , इस मायानगरी की चकाचौंध उसे खींच लाई थी उस मंझधार की ओर जहां से जीवन की कश्ती के लिए आगे कोई राह नहीं थी ।
वो भीगती रही न जाने कब तक ,की दरवाजे की दस्तक से उसकी...