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सेर को सवा सेर
पंडित किशोरी लाल काफी चटोरी तबियत के व्यक्ति थे। सुबह से शाम तक इधर उधर पंडिताई करने के बाद जो भी आटा सीधा मिलता था उसके खीर- मालपुए बनवा कर खाते थे- मजाल है किसी अन्य को एक भी मिले। सब के सब चट कर जाते थे। उनकी अम्मा और पत्नी हमेशा मन मसोस कर रह जाती थी। कई बार उन्होंने कोशिश की कि कुछ मालपुए छिपा कर बचा लें. मगर पंडित जी को न जाने कैसे पता चल जाता था और वो सब चट कर के ही डकार लेते थे। एक बार पत्नी ने 10 मालपुए बनाए और बोला कि आज बस 8 ही बने हैं मगर पंडित जी ने बोला कि नहीं तुमने 10 मालपुर बनाए थे. मुझे सारे खाने को दो नहीं तो तुम्हारा मार मार कर बुरा हाल कर दूँगा।
मरती क्या न करती चुपचाप उन्हें वो दोनो छिपा कर रखे हुए मालपुए भी दे दिए। दोनों सास बहु को समझ नहीं आ रहा था कि पंडित जी इतने बड़े ज्ञानी ध्यानी तो नहीं है तो क्या कहीं से कोई जादूगीरी तो नहीं सीख ली।
दोनों ने ये राज का पता लगाने की ठानी।
अगले दिन जब पंडिताइन रसोई घर में मालपुए और खीर बनाने लगी तो उसकी सास पंडित जी पर नज़र रखने लगी। वो ये देख कर हैरान हो गई कि पूजा पाठ करते समय पंडित जी का ध्यान रसोई घर पर ही था। उन्होनें अपने पास एक रेशम का लंबा गमछा रखा हुआ है। जैसे ही मालपुए तेल में डालने की आवाज़ आती थी,वो रेशम के गमछे में गांठ लगा देते थे ।जब वो खाने बैठे तो हर मालपुए के खत्म होने के बाद उन्होंने एक एक करके गांठ खोलते रहे।

पंडित जी के जाने के बाद सास ने बहू को पंडित की चालाकी के बारे में बताया।
"अब क्या करें मां जी.. ऐसे तो हम कभी मालपुए खा नहीं पायेंगे, वो तो सारा आटा भी अपने सामने घुलवाते हैं , ऐसा भी नहीं कि हम कुछ अलग से बचा लें और उनके जाने के बाद बना कर खा लें?

"तुम चिंता मत करो, वो सेर है तो मैं भी सवा सेर हूं, आख़िर उसकी मां हूं, कल देखना हम दोनों भी अपने हिस्से के मालपुए खायेंगे।" सास ने बहू को तसल्ली देते हुए कहा।
अगले दिन पंडित ने फिर वैसे ही किया,हर मालपूए के साथ गमछे में गांठ लगाते रहे। जब मालपुए खाने बैठे तो एक एक गांठ खोलते रहे।मगर वो इस बात से अनजान थे कि जब वो खाने से पहले मुंह हाथ धोने बाहर गए थे तो उनकी अम्मा ने चुपके से चार गांठे खोल दी थी। वो अपनी बांधी हुई गांठों के अनुपात में मालपूए खा कर पेट पर हाथ फिराते हुए घर से बाहर टहलने निकल गए। दोनों सास बहू ने खुशी खुशी मिल कर बचे हुए मालपुओं का आनंद उठाया। दोनों खुश थी कि अब उन्हें मालपूए खाने के लिए तरसना नहीं पड़ेगा।

© Geeta Dhulia