...

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सीता स्वयंवर
विवाह रचाने सीता माता का
स्वयंवर जनक रचाएं
बड़े-बड़े योद्धा आए थे जिसमें
रावण को नहीं बुलाएं।।

अभिमान से युक्त जो शक्तिशाली था
वैर-द्वेष था उससे बढ़ाए
आ धमका वो मद में चूर हो
राजा जनक के बिना बुलाएं।।

आया था वो सीता को वरने
सब नरपति थे थर्राए
युक्ति सोची देव-दानव ने मिलकर
मुक्ति रावण से कैसे पाएं।।

झूठा एक संदेश फैलाया
कालाग्नि, लंका में दहकती जाएं
लंकेश-लंकेश सारी जनता पुकारें
शीघ्रता से लंका आएं।।

राष्ट्र की खातिर छोड़ के भागा
ले स्वयंवर में भाग नही था पाएं
लंका में जैसे ही जाकर देखा
सब सुरक्षित उसने पाएं।।

चिंतन करता मनन था करता
था देवता क्यूं ये स्वांग रचाए
ध्यान लगाता कभी बैठ सोचता
अंत में इस निर्णय पर आएं।।

विरोध में जब मेरे ब्राह्मण खड़े थे
तब कितने मैंने ऋषि-मुनि काट गिराए
जमा किया था उनका रक्त कुम्भ में
मैंने भी उसमें अपनी कुछ रक्त की बूंद गिरायी।।

मैंने दिया मंदोदरी को लाकर उसको
दे विष का नाम बताएं
पी गई थी वो विष समझकर
जब मेरी अय्यासी छूट न पाई।।

वेदवती का श्राप सफल हो
उससे उसके गर्भ में सीता आएं
मैं तो था विश्व विजय पर
मंदोदरी लोक-लाज से वो घबराए।।

दिया जन्म और छोड़ के आई
जनक के खेत में सीता आएं
सीता में मेरा रक्त है बहता
वो पुत्री मेरी कहाएं।।

ब्रह्मा से मैंने वर लिया था
बुरी मेरी पुत्री पर नजर मेरी जाएं
मृत्यु का मेरी कारण बने वो
मेरे संग सभी राक्षस भी मुक्ति पाएं।।

क्या अधर्म मैं करने चला था
न बुद्धि में बात लाएं
कैसी रीत आज पड़ जाती समाज में
देव सब इसलिए ये युक्ति लगाएं।।

नोट -कम्ब रामायण से ये संज्ञान लिया गया