...

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खामोशियां ...
एक अलसाई सी दोपहर है...
कुछ कुछ अनमनी सी मै..
अचानक मन के किसी कोने से तुम उग आते हो।
और मै पिरा-पिरा उठती हूँ ...
हाँ,देखती हूँ तुमको अपने घने केशों मे ऊलझते हुए।
कभी उन्हे सहलाते हुए ...
तुम अक्सर पुछते थे न कि तुम जब भी मेरे बालों को सहलाते हो मेरी पलकें मुंदने क्यों लगती है ...??
मैंने भी जानना चाहा,
शायद! तुम्हारी उंगलियां मेरे बालों को कोई खूबसूरत सा नज्म सुना जाती हों ,जो रुह से गुजरती हुई मेरी पलकों तक पहुंच जाती हों ....
हाँ शायद! ऐसा ही कुछ होता हो।...