इश्क इबादत-७
सब विश्वास की कार में बैठते है। और निकल पड़ते है अपने मंजिल की ओर। विश्वास को खबर भी नहीं थी की उसकी जिंदगी उसे किस रास्ते पर ले जाने वाली है हर ख्वाब हसीन नही होता। विश्वास के साथ फ्रंट सीट पर वैष्णवी बैठी थी और पीछे की सीट पर श्रुति और अनुपम। दोनो अपने प्रेम वार्ता में खोए थे।और यहां वैष्णवी और विश्वास की जंग जारी थी।वो सीधा बोल नही सकता था और ये टेढ़ा सुन नही सकती थी। वैष्णवी हरे रंग के सूट में कमाल लग रही थी। वो सपना जी रही थी। इतना प्यार कब और क्यों उसे विश्वास से हो गया,वो इस उलझन में थी।और साथ ही साथ विश्वास को कुछ पता न चले इस बात की चिंता ने भी उसकी जान हलक में फसा रखी थी। इन सब बातो का नतीजा ये की वो थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी। कार अपनी रफ्तार ले रही थी,और वैष्णवी की हृदय गति अपनी रफ्तार खो रही थी। वो विश्वास को निहारना चाहती थी।मगर मात्र कंखियों से देख कर ही हृदय को संतोष दे रही थी। अब वो लोग मंदिर पहुंचते है। श्रुति की बेताबी अनुपम से अकेले मिलने की उसके चेहरे से झलक रही है। दोनो द्रुत गति से कार से उतरते है और मंदिर के पास के जंगल में गायब जैसे बादलों में बिजली कौंधी और अदृश्य। उनकी बेचैनी अब वैष्णवी समझ सकती थी। रह गए विश्वास और वैष्णवी कार के पास खड़े एक दूसरे का मुंह देख रहे है। अब क्या करे ये ही सोच रहे होंगे अपनी पढ़ाई छोड़ दोनो ने कोई बात तो की नही थी। और यहा पढ़ाई की बात तो हो नही सकती थी। विश्वास इधर उधर नजरे घुमाने लगा जैसे नजारें देखने में व्यस्त हो। और वैष्णवी उसे निहारने में व्यस्त। धूप तेज लगी तो ख्याल आया की दोनो को गए 1घंटा होने को था।
विश्वास - वैष्णवी चल मंदिर के दर्शन कर लेते है और वही बैठते है यहां धूप है?
वैष्णवी - दिख रहा है ।
विश्वास - तो चल ना की यही खड़े खड़े आमलेट बनने का शौख है।
वैष्णवी - तो चल। मेरे तो बालो से भी पसीना आ रहा है। पता नही क्यों मैने बाल खुले रखे( मासूमियत से कहा)
विश्वास - (वैष्णवी का हाथ पकड़ कर खींचते हुए) चल ना यार धूप लग रही है मंदिर जा के बाद बाद कर लेना
वैष्णवी - दिल धड़क सा जाता है बस उसके पीछे मंत्र मुग्ध सी चली जाती है।
दोनो मंदिर के चबूतरे पर बैठ जाते तभी वैष्णवी को लगता है की विश्वास उसे देख रहा है वो मन ही मन बहुत खुश होती है मगर आंख मिलाने की हिम्मत नही कर पाती दोनो काफी सारी बातें करतें है वैष्णवी साहित्य पसंद थोड़ी मोटिवेशनल थी उसकी बातो से विश्वास प्रभावित था।
to be continued
© shubhra pandey
विश्वास - वैष्णवी चल मंदिर के दर्शन कर लेते है और वही बैठते है यहां धूप है?
वैष्णवी - दिख रहा है ।
विश्वास - तो चल ना की यही खड़े खड़े आमलेट बनने का शौख है।
वैष्णवी - तो चल। मेरे तो बालो से भी पसीना आ रहा है। पता नही क्यों मैने बाल खुले रखे( मासूमियत से कहा)
विश्वास - (वैष्णवी का हाथ पकड़ कर खींचते हुए) चल ना यार धूप लग रही है मंदिर जा के बाद बाद कर लेना
वैष्णवी - दिल धड़क सा जाता है बस उसके पीछे मंत्र मुग्ध सी चली जाती है।
दोनो मंदिर के चबूतरे पर बैठ जाते तभी वैष्णवी को लगता है की विश्वास उसे देख रहा है वो मन ही मन बहुत खुश होती है मगर आंख मिलाने की हिम्मत नही कर पाती दोनो काफी सारी बातें करतें है वैष्णवी साहित्य पसंद थोड़ी मोटिवेशनल थी उसकी बातो से विश्वास प्रभावित था।
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