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सितंबर ५
सितंबर ५ की तारीख़ तारिखों में एक अलग ही तारीख़ रखता है । यह महज एक तारीख़ ही नहीं बल्कि एक दिवस है । वो दिवस जो समर्पित है उन महान हस्तियों को जिन्होंने हमारी और आपकी ही नहीं बल्कि तारिखों की भी तारीख़ बदली है । इस हैसियत की हस्ती बस एक ही है ।

कहा गया है गुरु और गोविंद दोनों खड़े हों तो पहले गुरु को नमन करना ही वेदसम्मत है । परन्तु मुझे लगता है जब गुरु खड़े हों तो गोविंद भी झुककर गुरु को नमन करेंगे और यह उचित ही है । गोविन्द ने भी इस धरा पर अवतरित होकर गुरु से ही सबकुछ पाया और गोविंद हुए । समय बदला और बदलाव के साथ ही गुरु और शिष्य का संबंध भी निश्चित तौर पर बदलाव आया है मगर फिर भी गुरु सदा गुरु ही रहेगा और ज्ञान की गंगा में डुबकी बस गुरु ही लगवा सकता है ।

बात अब हमारे दिनों का होना लाजिमी है । उन दिनों शिक्षक दिवस पर 20 पैसे की टिकट स्कूल में लेना होता था । हरे रंग के स्टाम्प साइज़ पर काले रंग क़ा राधाकृष्णन जी की...