...

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तुम
हलचल करती हुई नदी नही ,
गहरे समुन्दर जैसा शान्त बनना तुम ,
कश्मकश से उलझी जिन्दगी नही ,
उजली किरणों से रंगी ,
खुली किताब लिखना तुम ,
ख्वाबों की गली की बेबसी नही ,
हो जाए जो पूरे वो अरमान संजोना तुम ,
जबरदस्ती के रिश्तो की संगिनी नही ,
रुह को जो छू जाए ऐसा साथ चुनना तुम ,
अपनी कमजोरियों पर शर्मिन्दगी नही ,
बल्कि खुद की खुबियों पर नाज करना तुम
किसी दूसरे की सिर की बोझिल नही ,
अपने पैरों पर चलकर अपना मुकाम ढुढ़ना तुम|

© Akash dey