विवाह...
एक विचार यू ही उमड़ आया.... एक बार किसी ने कहा था उसे किसी के विवाह में जाना पसंद नहीं , जिज्ञासा वश मैने वजह पूछी तब उन्होने बताया कि वो ऐसे बहुत से लोगो को जानते हैं जो विवाह किये और उनके विवाह में सब खुश थे लेकिन कुछ वक्त बात वो दोनो एक दूसरे से खुश नहीं थे और परिणाम तालाक.... | उन्होने अपनी एक मित्र के बारे में भी बताया जो बहुत दुखी थी क्योकि उनके पति उनसे तालाक की मांग कर रहे थे...|
मैने इस विषय में गहन मंथन किया फिर एहसास हुआ हिन्दु संस्कृति में विवाह करने का रिवाज तो हैं लेकिन विवाह के बंधन को तोड़ने की कोई विधि नहीं हैं पति - पत्नी एक दूसरे से दूर रह सकते हैं लेकिन इस रिश्ते को खत्म नहीं कर सकते इस रिश्ते को खत्म करने वाला कोई शब्द ही नहीं हैं अंग्रेजी भाषा में बात करे तो divorce शब्द हैं जो marriage के बंधन को तोड़ता हैं | और उर्दू भाषा की बात करे तो तालाक शब्द हैं जो निकाह के बंधन को तोड़ता हैं| परन्तु यदि हम हिन्दी भाषा की बात करें तो हिन्दी में ऐसा कोई शब्द नहीं हैं जो विवाह के बंधन को तोड़ने की काबिलियत रखता हो | यदि गहराई से सोचा जाये तब एहसास होता हैं , विवाह कोई प्रक्रिया नहीं हैं जिसका अंत हो सके या सिर्फ एक रिति- रिवाज नही हैं जिसे तोड़ सके |
हिन्दु संस्कृति में विवाह एक संस्कार हैं 16 संस्कारों में से एक यदि संस्कार की बात की जाये तो इसका अर्थ शुद्धिकरण होता हैं अर्थात दोषयुक्त को दोषरहित करना | जो हमें पवित्र बनाता हो, पूर्ण बनाता हो उसे सिर्फ एक प्रक्रिया कहना तर्कसंगत नहीं हैं | इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार होते हैं , ये हमारे जीवन से जुड़े होते हैं और यहीं संस्कार हमें हिन्दु संस्कृति से जोड़ते हैं हमें हमारी संस्कृति के योग्य बनाते हैं हमें परिपूर्ण करते हैं | विवाह के रश्मों की बात करें तो ये सिर्फ एक प्रक्रिया नही हैं, विवाह के बंधन में सात फेरो के साथ तो इंसान जन्मजन्मांतर के लिये बंध जाता हैं | विवाह के वक्त दुल्हा और दुल्हन देवतुल्य हो जाते हैं , कुछ रश्में होती हैं जैसे पैर पूजन दुल्हा दुल्हन के पैर वो लोग छूते हैं जो उम्र में बड़े होते हैं, क्योकि उस वक्त दुल्हा और दुल्हन देवतुल्य हो जाते है , हमारे यहा कन्याओं को देवी मानते है उनके पैर भी छूते लेकिन हल्दी और तेल चढा़ते वक्त मैने कन्याओं को भी दुल्हा दुल्हन के पैरो को स्पर्श करते देखा हैं.. |
मतलब पूरा साफ हैं विवाह कोई बंधन नहीं जिसे तोड़ दिया जाये ये संस्कार हैं हमारे बहुत से भाव जुड़े होते हैं अपने भी और अपनों के भी जो हमें हमारी संस्कृति से जोड़ते हैं... विवाह के पश्चात पति- पत्नी एक दूसरे से अलग रह सकते हैं लेकिन विवाह को तोड़ नहीं सकते | रामायण में भी राम ने सीता को स्वयं से दूर वन में भेज दिया , लेकिन राम की पत्नी सीता थी सीता हैं और अनंत काल तक सीता ही रहेंगी...|
© प्रति- आज की मीरा
#pratikishan
#विवाह.
#radhakrishna
मैने इस विषय में गहन मंथन किया फिर एहसास हुआ हिन्दु संस्कृति में विवाह करने का रिवाज तो हैं लेकिन विवाह के बंधन को तोड़ने की कोई विधि नहीं हैं पति - पत्नी एक दूसरे से दूर रह सकते हैं लेकिन इस रिश्ते को खत्म नहीं कर सकते इस रिश्ते को खत्म करने वाला कोई शब्द ही नहीं हैं अंग्रेजी भाषा में बात करे तो divorce शब्द हैं जो marriage के बंधन को तोड़ता हैं | और उर्दू भाषा की बात करे तो तालाक शब्द हैं जो निकाह के बंधन को तोड़ता हैं| परन्तु यदि हम हिन्दी भाषा की बात करें तो हिन्दी में ऐसा कोई शब्द नहीं हैं जो विवाह के बंधन को तोड़ने की काबिलियत रखता हो | यदि गहराई से सोचा जाये तब एहसास होता हैं , विवाह कोई प्रक्रिया नहीं हैं जिसका अंत हो सके या सिर्फ एक रिति- रिवाज नही हैं जिसे तोड़ सके |
हिन्दु संस्कृति में विवाह एक संस्कार हैं 16 संस्कारों में से एक यदि संस्कार की बात की जाये तो इसका अर्थ शुद्धिकरण होता हैं अर्थात दोषयुक्त को दोषरहित करना | जो हमें पवित्र बनाता हो, पूर्ण बनाता हो उसे सिर्फ एक प्रक्रिया कहना तर्कसंगत नहीं हैं | इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार होते हैं , ये हमारे जीवन से जुड़े होते हैं और यहीं संस्कार हमें हिन्दु संस्कृति से जोड़ते हैं हमें हमारी संस्कृति के योग्य बनाते हैं हमें परिपूर्ण करते हैं | विवाह के रश्मों की बात करें तो ये सिर्फ एक प्रक्रिया नही हैं, विवाह के बंधन में सात फेरो के साथ तो इंसान जन्मजन्मांतर के लिये बंध जाता हैं | विवाह के वक्त दुल्हा और दुल्हन देवतुल्य हो जाते हैं , कुछ रश्में होती हैं जैसे पैर पूजन दुल्हा दुल्हन के पैर वो लोग छूते हैं जो उम्र में बड़े होते हैं, क्योकि उस वक्त दुल्हा और दुल्हन देवतुल्य हो जाते है , हमारे यहा कन्याओं को देवी मानते है उनके पैर भी छूते लेकिन हल्दी और तेल चढा़ते वक्त मैने कन्याओं को भी दुल्हा दुल्हन के पैरो को स्पर्श करते देखा हैं.. |
मतलब पूरा साफ हैं विवाह कोई बंधन नहीं जिसे तोड़ दिया जाये ये संस्कार हैं हमारे बहुत से भाव जुड़े होते हैं अपने भी और अपनों के भी जो हमें हमारी संस्कृति से जोड़ते हैं... विवाह के पश्चात पति- पत्नी एक दूसरे से अलग रह सकते हैं लेकिन विवाह को तोड़ नहीं सकते | रामायण में भी राम ने सीता को स्वयं से दूर वन में भेज दिया , लेकिन राम की पत्नी सीता थी सीता हैं और अनंत काल तक सीता ही रहेंगी...|
© प्रति- आज की मीरा
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