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एक राज: अकेली राधा जी। (भाग १)
ये राधा जी की मूर्ति अकेली क्यों है, मैंने बचपन से इन्हें अकेला देखा है, मैंने अभी तक कभी इनकी मूर्ति कहीं भी अकेली नही देखी। हमेशा राधा कृष्ण को साथ साथ देखा है फ़िर ऐसा क्यों?" माँ थोड़ा हिचकिचाइ परंतु इन्हें ये पता था की कभी न कभी सुमित ये सवाल उनके सामने जरूर लाएगा क्योंकि ये दृश्य ही ऐसा था। राधा जी को अकेला देखने पर कई लोगों ने उन्हें टोका तो कई ने इन्हें अकेला रखना गलत कहा। परंतु राधा जी को इन लोगों ने अकेला ही रखा ये जिद्द इसके पिता अनुपम की थी। और ये बात को उनकी पत्नी भली भाँति जानती थी। और आज यही सवाल उनके बेटे ने भी पूछ लिया। माँ मानो पहले से ही तैयार थी इन प्रश्नो का उत्तर देने को। या मानो वो प्रतिक्षा कर रही थी उनके बेटे को बढ़े होने का और ये सवाल के उत्तर को समझने लायक होने का।
"ये तुम्हारे पिता से जुड़ी एक लंबी कहानी है। परंतु वादा करो ये बात तुम उनसे नहीं करोगे।" "क्यों माँ" "बस वादा करो फ़िर मैं तुम्हे बताऊंगी।" "ठीक है वादा" बोलते ही थोड़ा सुमित अपनी माँ को नटखट भरी नज़रों से घूरते हुए बोला आख़िर कहानी क्या है? माँ ने बताना चालू किया "तुम्हारे पिता जब बारहवीं क्लास में थे तुम्हारे दादाजी और दादी माँ ने उन्हें जे.ई.ई की तैयारी के लिए उन्हें बाहर भेजा और वो जहाँ कोचिंग करने गए वो तुम्हारा नानी घर जमशेदपुर था।" "मतलब पापा तुमको वहाँ मिले थे?" बेटे ने हस्ते हुए अपनी माँ से पूछा, "कहानी सुननी है ये मैं जाऊँ" आँख दिखाते हुए माँ ने पूछा? "नहीं, नहीं, मैं सुन रहा हूँ न चुप चाप से, बोलो बोलो" सुमित अब शांत हो गया। पहले ही दिन क्लास थोड़ा लेट आये तुम्हारे पापा, पर उनके और वहाँ के शिक्षक उनसे भी लेट थे तो क्लास में बस हल्ला और मस्ती चल रही था, कुछ बेंच पर बैठे थे कुछ डेस्क पर मतलब 150 के बच्चों के समूह में गए थे तुम्हारे पापा परंतु पहली ही दिन उनको एक लड़की दिख गई और पता नही कैसे उनके दोस्तों ने उन्हें उस लड़की के बारे में सबकुछ बता भी दिया।" "बताया नही होगा माँ हम लड़के हैं हम सब पता कर लेते है" बीच में बात काटते हुए सुमित एक अलग ही तेवर से बोला। माँ ने एक प्यार से थपकी देते हुए कहा "तुम्हारे पिता ऐसे नही थे थोड़े शर्मीले स्वभाव के थे। उनके दोस्त ने बस मजाक मजाक में उन्हें उसकी सारी जानकारी दे दी थी। और लव एट फर्स्ट साइट तो उन्हें हो ही गया था।" "मम्मी मेरी है हीं ऐसी" ऐसा कहते हुए सुमित हसने लगा, संध्या मुस्कुराई और कहानी को आगे रखा "कुछ दिन तो बस ऐसे ही गुजरे बस क्लास आकर पढ़ना और दूर से उस लड़की की तरफ़ देखना। फ़िर उस लड़की ने ही उनसे बात की शुरुआत की और कहानी आगे बढ़नी लगी पर फ़िर भी कहानी की दूरी बहुत थी। दोनों बात तो कर रहे थे पर प्यार है दोनों में से किसी ने भी कबूल नही किया था। तुम्हारे पापा थे भी शर्मिले स्वभाव के, दिन बीतते गए पर दोनों मे न सही से दोस्ती हुई और न सही से बात। वो परेशान थे क्योंकि परीक्षा नजदीक थी और फिर उन्हें घर भी जाना था, उन्हें डर था की कहीं वो उसे खो न दे। "तो आप बोल देती माँ" सुमित ने बीच में फ़िर कहा, मुझे थोड़ी... इतना कहकर संध्या शांत हो गई। "हाँ आपको कहाँ से पता होगा वो बात तो उनके दोस्तों को भी नहीं पता थी। माँ आगे की कहानी सुनाओ" ये कहकर सुमित माँ की तरफ़ देखने लगा, संध्या पूरी तरह से शान्त थी जैसे अतिथ ने उसे छु लिया हो और वो उस अतिथ में घूम हो गई हो।
"कुछ नही फिर परीक्षा आ गई, सभी लोग परीक्षा देने गए परीक्षा केंद्र सभी का एक ही था, परंतु उस वक़्त भी तुम्हारे पापा अकेले थे, दूर से अपनी पसंदीदा लड़की को देख रहे थे और सोच रहे थे एक बार रिजल्ट अच्छा आजाए उसके बाद वो उसे अपने प्यार के बारे में बतायेंगे।" सुमित ने फिर रोका अच्छा मतलब आपको पापा ने रिजल्ट के बाद बोला था, इस बार संध्या गुस्सा हो गई "सुनना है तो सुनो नही तो मैं चली, बहुत बीच में बोलते हो।" सुमित फुस्फुसाया मतलब पापा ने रिजल्ट के बाद भी नहीं कहा।
और फ़िर बोला "अच्छा सॉर्री माँ दुबारा नहीं बोलूँगा सुनाओ अब"। " परीक्षा हो गया रिजल्ट आ गया तुम्हारे पापा ने राज्य में अच्छा रैंक लाया और सभी लोग कोचिंग में फ़ोटो खिंचवा ने पहुँच गए पर एक लड़की नहीं आई थी और उसी को तुम्हारे पापा खोज रहे थे अपनी दिल की बात कहने को। पर सबसे पता करने के बाद भी उसका पता नही चला और वो कहीं गायब हो गई। अब बीच में टोकना मत कहाँ गई थी कहाँ नहीं चुप चाप से अपने पापा के नज़र से कहानी देखो।" ऐसे कहते संध्या ने सुमित को घूरा और कहानी को आगे रखा "वो लड़की गायब हो गई, कहाँ गई किसी को कोई ख़बर नहीं और तुम्हारे पापा उदास हो कर अपने गाँव मतलब घर आगए। तीन चार महीनों बाद उन्होंने आई.आई.टी में प्रवेश किया और अपनी पढ़ाई चालू कर दी पर कहीं न कहीं वो उस लड़की से मिलना चाहते थे। उनके वहाँ के दोस्तों के सुझाओ देने पर उन्होंने उसे सोशल मीडिया पर ढूँढना चालू किया और किस्मत को शायद यही मंजूर था, तुम्हारे पापा को वो लड़की मिल गई।" नए साल की शुरुआत होने को थी तो नए साल की ओट लेकर उन्होंने उससे बातें शुरू की कुछ ही दिनों में दिल का हाल भी बता दिया, उसने कहा वो अभी तैयार नहीं है फिर भी वो उन्हें पसंद करती है पर उसे कुछ महीनों तक इंतजार चाहिए और ये बोलकर वो फ़िर से कहीं गायब हो गई। तुम्हारे पिता दुखी रहने लगे। परंतु पढ़ाई करते रहे की कभी वो वापस आये तो उन दोनों का भविष्य अच्छा रहे।" परंतु दो साल तो कोई पता नहीं। न वो आई और न कोई सोशल मीडिया पर कनेक्सन्।फ़िर एक दिन तुम्हारे पापा के पास एक मेसेज आया जो उसका था, इंतजार है अब भी या कोई मिल गई। अगर है तो मिलते है आज शाम पांच बजे तुम्हारे कॉलेज के बाहर कैफ़े में। तुम्हारे पापा चौंक गए या खुशी से झूम उठे। घड़ी देखा चार बज रहे थे। दोस्तों को बताया तो उन्होंने गिफ्ट देने के लिए कहा तुम्हारे पापा तो अलग ही दुनिया के क्या ले पता ही नहीं फिर बहुत देर सोचने के बाद उन्होंने एक गिफ्ट लिया और चले गए मिलने।
मुझे पता था तुम जरूर आओगी मिलने कभी न कभी, बहुत इंतजार करवाया तुमने पर तुम आई मैं बहुत खुश हूँ। ये लो मैं तुम्हारे लिए ये तोहफा लाया हूँ। इतना कहकर तोहफे को उसके हाथ में रख दिया उन्हें डर था की उसे ये पसंद आएगा या नही, पर वो बोली वाह इतने खूबसूरत राधा कृष्ण की मूर्ति बहुत खूबसूरत है धन्यवाद। तुम्हारे पिता ने फ़िर पूछा तुम्हारा जवाब अब मिलेगा दो साल हो गए इंतजार के? वो शांत हो गई बोली मैं तुम्हें अब भी पसंद करती हूँ जैसा पहले करती थी पर अब मैं तुमसे... प्यार भी करती हूँ। दोनों गले मिले थोड़े देर बाद वो बोली मुझे जाना होगा और कब मिलूँगी ये मत पूछना जवाब मेरे पास भी नहीं है। पर जल्द मिलूँगी वादा है। ये कहकर वो जाने ही वाली थी की वो रुकी और राधे जी को तुम्हारे पापा के हाथ में दे दिया और बोली जब हम साथ होंगे तो कृष्ण और राधे भी साथ होंगे तब तक के लिए ये दोनों भी अलग रहेंगे। और इससे कृष्ण को राधे से मिलने के लिए हमलोगों को जल्दी मिलवाना होगा"
"ये क्या बात बता रही हो तुम, इस बात को मैंने तुम्हें बताने से मना किया है न" अनुपम वहाँ आ चुका था और वो गुस्से में बोला, संध्या डर गई। वो शांत हो गई। संध्या बोली "तुम्हारा बेटा अब बड़ा हो गया है.. " अनुपम ने फ़िर बात काटा और बोला मुझे इसपे कोई बात नहीं करनी और तुम भी कुछ नहीं बोलोगी" इतना कहकर अनुपम अपने कमरे में गुस्से में चला गया। सुमित समझ चुका था जिस लड़की की बात शुरू से हो रही वो उसकी माँ नहीं बल्कि उसके पिता की पहली प्यार थी और ये राधा जी उसकी निशानी। वो अपनी माँ की तरफ़ देखा और शांत होगया। वो मंदीर में रखी राधा जी की मूर्ति के तरफ़ गया और बोलने लगा मेरी ये गलती थी की मैं आपकी पूजा करता रहा आप तो मेरे पापा की जख्म और मेरी माँ के दर्द की निशानी हो आपका कोई हक नहीं जो आप मेरे घर में रहो।" और वो राधा जी की मूर्ति को हटाने अथार्थ विसर्जन करने की सोचकर मन्दिर में चला गया।
© A.K.Verma