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वाघ-बकरी चाय
कटिंग चाय, मसाला चाय, कहवा, लाल चाय और न जाने कितने ही विभिन्न प्रकार के चाय। भारत में, चाय केवल एक पेय नहीं है बल्कि यह एक भावना है। सुबह सूर्योदय के साथ आलस भगाने से लेकर सूर्य अस्त होने के साथ शाम को शरीर को ऊर्जा देने तक, चाय हमारी ज़िंदगी में अहम भूमिका निभाता है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्य ऊर्जा पेय या पेय पदार्थों के विपरीत, चाय हमारे शरीर के भीतर अकेले नहीं जाता है। यह हमेशा बिस्कुट या नमकीन से भरी प्लेट और इत्मीनान से होने वाली गप्प या महत्पूर्ण बातचीत के साथ जाता है। यही कारण है कि, ‘अड्डा’ शब्द ( जिसका अर्थ बातचीत है) अब चाय पीने के अनुभव के साथ महत्वपूर्ण रुप से जुड़ गया है। इसका प्रमाण देश के किसी भी हिस्से या कह सकते हैं कि करीब हर कोने में पाया जा सकता है।

एक ऐसे देश में जहाँ हर किसी की एक अलग पहचान और विचारधारा है, वहाँ विविधताएं और मतभेद बस एक कप चाय के प्याले के साथ शांत हो जाती हैं। इसी विचार के साथ भारत के सबसे प्रतिष्ठित चाय ब्रांडों में से एक वाघ बकरी चाय अस्तित्व में आया था।
वाघ-बकरी चाय की शुरुआत एक भारतीय उद्यमी, नरदास देसाई ने की थी और इस चाय का सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई का एक लंबा इतिहास है।

बात 1892 की है, जब...