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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है।।
एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त व असंभव में वो अपनी उस🔴 डायरी जिसका नाम उसने "वासतवकीमें पांव के दबे हुए छाले की बुनियाद एक अल्फाज़ ए म्यान का वो मंजर बताया था जिसका नाम था "अल्फाज़ ए स्वांग बाजार की म्यान की उस लालटेन में! 🔴 प्रश्नवाचक ने इस पर एक और प्रशन चर्चा में उपस्थित किया पांव के वो दबे हुए छाले की बुनियाद एक अल्फाज़ ए म्यान का वो गहरा मंजर बन काई बेगुनाहो को एक अल्फाज़ ए स्वांग बाजार में एक ही उत्पीड़न करने वाली वो आखिरी अल्फाज़ ए स्वांग म्यान बाजार में वो एक कागज़ की भीख की बुनियाद पर खड़े होकर अपने पांव के चीने दाबे उन आशिने ए बाजार स्वांग की उन अंधरी सड़कों में घने अंधेरे में भी मैं जागती क्यों ताकि अपने पांव के दबे हुए छालों को शायद ही कभी मैं मिटा पाऊं इसलिए वह भटकती रहती है उन राहें बाज़ार की उन आशिने ए बाजार के स्वांग की गलियों में जहां वह गुनम्यादिनी चिड़िया 🕊️ एक बुनियादी बुझी मसालों में कुछ बूंदें 💦🩸 अपने वीर्य की तथा कुछ अपने लहू की बुनियाद पर खड़े होकर वह करतीं गुहार जहां उसे क्या कहते हैं तथा जिन बंद कमरों से आती वो आजीब आजमाइश की फरमाइश की बुनियादों की आवाज उसे जहां वो उन्हें अपना कालश्रोथ विभकितश्रोत लिगश्रोथ जातिश्रोत सबकुछ शूनयमय करके कालचकृ को हमेशा हमेशा बढ़ावा देती है वो जगह का स्पष्टीकरण कीजिए!
🔴 स्वांग ए बाजार की गलियों में वो जिस्म ए शराब का वो गहरा मंजर था.... जिसे और जिस मंजर को सिर्फ हम राहे मंज़िल की म्यान तक का
वो ज़ख्म ए स्वांग बाजार आलम ए साहिब की वो पवित्र ग्रन्थ शायद कमबख्त हम ही हैं इस शणयत्रं ए स्वांग बाजार की इन मनमसत शवाब ए कातिल ए हसिना की ख्वाहिश व मंजर को हम ही उजागर करते हैं! जहां हर तरफ स्वांग ए बाजार का आखिरी मंजर सिर्फ अल्लाह -परवरनीगार है वहां हम उस आखिरी मंजर को पल पल संजोने वाले लोग हैं जो कि उन आशिने ए बाजार की स्वांग नाट्य रूपांतरण श्रृंखला की बोटी बनकर कर्मपोशित कर्मपोटली स्वागिंनी नपुंसकीय आहुतिका श्रापिका विध्वंसकीय लोक्तियो सून्यनिका स्मारककीय आदि लोक्तियो में वर्णित हुई थी "बड़ी हैरत की बात है उन से किसी ने कुछ पूछा नहीं?(स्पष्टीकरण)🔴 उस भयानक से मंजर में वो रोज़ रोज़ जो बहुत ही लंबा मोटा काला और गुलाबी रंग का वो खंजर मेरी अपनी चूत हल्के हल्के सहलाने तथा उसी समय वह मेरी चूचियों को पकड़ कर चूम रहा था और चूसने और चाटने काटने भी लगा 💋👅👄💋 और वह फिर जब नग्न अवस्था में उसके सामने पड़ी थी तब इतना करते वो और आगे बड़ा कुछ देर तक मेरी चूचियों को दबाने और चूसने चाटने काटने के बाद और थोड़ी देर तक अपना औजार 🍌 मेरी चूत में डाल दिया और फिर धीरे धीरे से कब तेज़ होगा कुछ नहीं जानतीं मैं फिर उसने मुझे जब देखा कि मेरी चूत से वीर्य निकलना शुरू हो गया तो उसे भी मज़ा लेकर चूसने चाटने लगा और उसके बाद उसने मुझे पेट बल लेटकर अपना वो लंबा काला औजार 🍌 मेरी गान्ड में घुसेड़ दिया और फिर मैं
थोड़ा झटपटाकर चिल्ला उठी आह! और फिर धीरे-धीरे अपने आप को रोक नहीं पाया और और तेज़ हो गया अब मैं ही कसकर उत्तेजित हो गई -आह आह ओह ओह उफ आह आह आह इ-इ-करती रही मगर फिर भी हम रोके नहीं क्योंकि मेरी जरूरत थी और उसकी ये ख्वाहिश थी।।
ना वो रूका ना मैंने रूकने के लिए कहा उसे।।

ऐसे करके वह अपने उस मंजर आशिए बाजार की उस मंजर को अपनी ही बुनियाद को मजबूर,
पीड़ित, बेईमान, पेशेवर बनाकर उस आखिरी आशिने ए बाजार स्वांग उस अल्फाज़ ए स्वांग म्यान की बुनियाद से ग्रस्त मंजर वो पूरा कर उस
भटके हुए मुसाफिर को उसकी नारित्व व स्त्रीत्व को से ग्रस्त करके उसे उसकी आखिरी मंजर ए स्वांग बाजार का आखिरी अल्फाज़ दिलाती जिसे वो अपना शौक बतता है वो उसे अपनी मजबूरी कहती हैं।।😔😔

🔴 आशियाने बाजार ए म्यान स्वांग की उन गलियों में उस मंजर ए म्यान आलाम ए स्वांग बाजार के साहिब से ग्रस्त होकर रोगिन स्वार्थ व इच्छा से ग्रस्त होकर अपनी योनि के कालश्रोथ जातिश्रोत लिगश्रोथ विभकितश्रोत से मंजर ए बाजार ए आलाम ए साहिब तुम्हारी बुनियाद पर खड़ी जरूर हूं मगर इन "आशियाने बाजार ए म्यान स्वांग की उन गलियों में उस मंजर ए म्यान आलम ए स्वांग बाजार में मेरी अपनी कोई दास्तान ए स्वांग सी सेयाही की बुनियाद भी नहीं जिससे मैं कुछ अपना आशिने हरम के हमाम से मनमसत शवाब ए कलियों के गोरे बदन की बुनियाद से ही जगमगा जाता तुम्हारा वो महल ओ हुजूर ए स्वांगी तू कौन और मैं कौन ये मैं क्या इस कालचकृ में प्रस्तुत कोई स्पष्टीकरण की आसीमता व स्थापना व बुनियाद नहीं बताई गई थी मगर अब ये भी एक तरह का सवाल अंकित किया गया है।।📝☝️🦅🐦🕊️










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