...

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खुद की खैरियत
कुछ वक्त पहले खुद से मिलने आई हूं । दरवाजा खटखटाया मेने भी खुदके अंदर जाने का , वहा भी मेने खुदको खोखला पाया , कुछ पुरानी यादें मन के वहम अंदर ही खुद को खाए जा रहे थे ,मन के हर कोने में झांकने की कोशिश में कुछ यादें पुरानी झकझोड़ रही थी ,कुछ पल आंसू कुछ पल की खुशी आंखो से झरने बहाए जा रही थी ,आखिर खुद से जो मिलने आई थी ।
न जाने क्यों हकीकत डरा रही थी ,मन के अंधेरे में रोशनी आ रही थी , आखिरकार खुद की खैरियत पूछी , तो हाल ए दिल खामोशी से एक कोने में बैठा दुबक के , सिसकियां लगा रहा था ,आखिरकार कितना सहे दिल , रोए भी तो कितना रोए ,
न जाने , क्यों कोशिश कर रहा था नई ख्वाइश की ,उम्मीद से परे नादान है , ये दिल , एक कोने में बैठा , हर किसी की बाते सहता , सवाल हजार ,जवाब एक ,
पहले जोड़ते हो तो , तोड़ते क्यों बाद में ,
बेचारा दिल कितनी समझाइस के बाद भी नही समझता , हिस्सा भी तो किसका है ।
मेने भी गुमसुम होकर उसके हाल ए दिल का हाल जान लिया , आखिरकार खुद से मिलने जो आई थी
to be continued........