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भूमिका तेरी कहानी 2
भूमिका के जीवन का एक और अध्य्याय
आपके समक्ष है

भूमिका कहती हुई पति से मैं आपसे आजतक कभी कुछ नहीं मांगी

न कभी आपसे किसी भी चीज़ के लिए जिद की

हमारी शादी love marrige है
हम दोनों का प्यार शादी से पहले भी था
लेकिन अब आप मुझे अच्छे से प्यार से बात भी नही कर पाते

फिर भी मैं आपसे शिकायत नहीं करती
बस आपकी खुशी के लिए

अपनी तकलीफ मन मे ही दबा लेती हूँ

कभी मां के तस्वीर के सामने खुद की शिकायत करती हूँ

की माँ मैं क्या अच्छी बेटी से अच्छी पत्नी नही बन सकी

माँ भी तो मुझे कुछ जवाब नही देती न

पति बस ये कहकर की तू ज्यादा सोंचती है जा अपना कर कह कर चले जाते हैं

भूमिका फिर निःशब्द होकर बैठ जाती है

लेकिन कभी अपनी व्यथा किसी को नही बताती

कभी कभी इतनी टूट जाती है कि रोते रहती है

और माँ को कहती है माँ तू मुझे अकेली क्यों छोड़कर चली गयी

भूमिका के जीवन में खुशियां नजर आती है तो वो दुखी क्यों है

वह किस बात से इतनी टूट जाती है

भूमिका को सब मिलता है पति से लेकिन माँ की ममता नहीं मिलती

वो अपनापन नहीं मिलता जो स्त्री के जीवन मे बहुत महत्वपूर्ण है

उसको माँ की कमी अंदर तक झकझोर देती है

दोस्तों जिंदगी में पैसा और प्यार सबकुछ नही होता

पति का स्वरूप भी जरूरत के हिसाब से बदले तो पत्नी को कभी मां और दोस्त की कमी नही खेलेगी

भूमिका एक साहसी लड़की है बचपन से उसने जिंदगी में उतार चढ़ाव देखी है
बहुत करीब से ।

लेकिन मां उसके साथ थी
तो उसे नई ऊर्जा मिलती थी

कभी टूटी नहीं

भूमिका जब छोटी थी तो उसको माँ कहा करती थी
की बेटी तू मेरी एकलौती बेटी है

मैंने तुम्हें बेटा और बेटी दोनों का प्यार दिया है

तू मेरे घर को जब छोड़कर जाएगी ससुराल तो मैं तुझे बेटी बनाकर विदा करूँगी

लेकिन तू बेटा बनकर हमेशा मेरे साथ रहेगी।

ये बाते भूमिका को मां के जाने के बाद
और ज्यादा याद आती है

कभी रोती तो कभी मुस्कुराती है
लेकिन किसी को अपना दर्द नहीं बताती है

आज मैं उसको अपनी प्रेरणा मानता हूँ
उसको आज के युग मे एक मिसाल मानता हूँ

जिसने अपनी खुशियों को परिवार के लिए त्याग दिया

आज वो डॉक्टर है लेकिन गृहिणी बनकर अपने सपने को अपने अंदर ही दबा दी

क्योंकि वो जॉब करेगी तो परिवार को कौन संभालेगा।

जिम्मेदारी कोन उठायेगा परिवार का
उसको किसी ने मना नहीं की जॉब करने के लिए

लेकिन उसका परिवार अनाथ हो जाएगा उसके घर मे न होने से

ऐसी सोंच रखने वाली स्त्री की पूजा न हो तो आज के वक़्त में स्त्री का जीवन अभिशाप है

आज त्याग की मूर्ति है भूमिका

जिसने अपने सपनो को दबाकर परिवार
को अपना वक़्त दिया

प्यार दिया सम्मान दिया

आगे का अंश आपके सामने फिर एक नए मोड़ के साथ प्रस्तुत करूँगा

अपना विचार coments के माध्यम से रखे तो मुझे आगे और भी भूमिका की जीवन का संघर्ष और उसका त्याग नए कहानी के रूप में प्रस्तुत करने में आसानी होगी।






© kuldeep rathore