...

8 views

" तुम मेरे हो "

सदियों से राधा कृष्ण की हैं और कृष्ण हमेशा से राधा के
प्रेम बंधन पवित्र रिश्ता, युग युगांतर से दोनों एक दूजे के
तुमसे कितना प्यार है, कैसे दिखलाऊँ तुम्हें प्रियवर मेरे
कैसे बताऊँ तुम्हें कि कितनी मन्नतों से हुए थे तुम मेरे

तुमसे इतना प्यार है मुझे सनम मेरे, जैसे भँवरे को फूल से
कितनी प्यारी आँखें तुम्हारी, दिखती हूँ मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ जैसे
जी तो चाहता है कि तुम्हें हर पल देखती ही रहूँ, सब भूल जाऊँ
तुम्हारे प्यार के नशे में, जी चाहता है हमेशा के लिए डूब जाऊँ

तुम मेरे हो दुनिया से क्या डरना, मेरे ख्वाबों के तुम राजा हो
तुम्हारी हूँ यही सच्ची अपनी प्रेम कहानी, मैं शरीर तुम प्राण हो
तुमसे बिछड़ कर क्या कहें किस हाल में दिन रात कट रहे हैं
जीती तो हूँ मग़र जाने कौन सी रस्म और कसम निभा रहे हैं

इंतज़ार है मुझे उस पल का, मुद्दतों बाद ही सही ग़म नहीं
देख तुम्हें लिपट जाऊँ समा जाऊँ तुम में, और कभी छोडूँ नहीं
विरह के दिन बहुत काट लिए अब और नहीं प्रियतम मेरे
यूँ ही नहीं मिले थे हम अचानक, सात फेरों संग हुए थे तुम मेरे

दूरी इस हद तक ना बढ़ाओ कि अंत समय तक कम ना कर पाऊँ
कुछ जुगत लगाओ कम हो दूरी तुमसे, दोबारा फ़िर मैं मिल पाऊँ
कैसे जीती तुम बिन कैसे हाल तुम्हें सुनाऊँ, सुन ना सकोगे
जो ज़्यादा देर की आने में तुमने, शायद फ़िर पा ना सकोगे

तुम मेरे हो, मेरे ही रहोगे, चाहे जहाँ भी रहो तुम मेरे प्रियतम
तुम्हें छीन ना सकेगा मुझसे कोई, आयें भगवान या स्वयं यम
लिपट कर तुमसे, नम आँखों से, सूखे नर्म होठों से, सब कह दूँगी
नहीं हटूंगी लम्हों तक, तुम्हारे सीने में ऐसे ही घंटों सिमटी रहूँगी

लग सीने से तुम्हारे, सुनूँगी आवाज़ तुम्हारे हृदय की प्रियतम
क्यों नहीं सुनाई दी थी, तुम्हें जो कहती थी तुम्हारी धड़कन
बार-बार मुझसे मिलने की ज़िद, जब हिय तुम्हारा करता था
क्यों दबा देते थे तुम सुनकर, अनसुनी तुम्हारा दिल करता था

प्रिय मेरे आओ मिलने, प्यासी हैं अँखियाँ तुम्हारे दर्शन को
तरस रही आत्मा मेरी, एक झलक दिखला जाओ नयनन को
काश तुम्हें दिखला पाती ज़ख़्म दिल के, इंतज़ार में नासूर बन गए
तुमसे दूर तड़प कर जीना, प्यार में तुम्हारे जाने क्यों दस्तूर बन गए

आँखें बंद किये सीने से तुम्हारे, घंटों तक लिपटी रहती,
नहीं हटती पहरों तक, धड़कनों को शोर ना करने देती
बुझा लेती प्यास अपनी, जन्म की जन्मों तक के लिए
ख़बर हो जाये तुम्हें कहीं से, मेरी चाहत की एक पल के लिए

कह पाती तुमसे व्यथा सारी, अपने व्याकुल प्यासे हृदय की
सीने में विरह के फफोलों को ठंडा करती है नदिया नैनों की
मैं करती रही इंतज़ार तुम्हारा प्रिय, क्षितिज के उस छोर पर
आ जाओ शायद तुम कहीं से, बीत चला अब आख़िरी पहर


© सुधा सिंह 💐💐