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बहू और बेटी (लघुकथा)

बहू और बेटी (लघुकथा)
आ गई तुम। आज आने में बड़ी देर लगा दी। किसी सहेली के यहां चली गई थी क्या? पूनम की सास ने उसके दफ्तर से आने पर पूछा। मां जी आज मेट्रो टाइम से नहीं मिली, इसलिए आने में लेट हो गई। अच्छा अब आ ही गई हो तो थोड़ा काम देख लो। रसोई में मैंने आलू उबालने के लिए रखे थे, जरा उन्हें देखकर छील देना और सुबह के लिए थोड़े से छोले भिगो देना, और हां ऊपर छत पर कपड़े सूखने के लिए डाले थे, उन्हें उतार लाना। पता नहीं क्यों आज मुन्ना सुबह से ही बहुत रो रहा है, थोड़ी देर में जाकर डॉक्टर को दिखा लाना। बेचारी पूनम क्या बोलती, दफ्तर से आते ही घर के काम में लग गई और एक-एक कर के कामों को निपटाने में लग गई। इसी बीच पूनम की ननद राखी भी दफ्तर से घर लौट आई। अपनी बेटी को आता देख पूनम की सास बोली, लगता है आज दफ्तर में काम ज्यादा था इसलिए देर हो गई। आओ मेरे पास बैठ जाओ, मैं अभी तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं।

प्रवेश पांडेय

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