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सरोजनी
रात के बारह बजे है, बाहर बहुत ठंड है। ऐसे में सरोजनी, एक 14 वर्ष की लडकी अपने कमरे के बालकनी में बैठी है। उसके कमरे और बालकनी के बीच में इंडिया पाकिस्तान कि तरह एक सिशे की दीवार है जो दोनों तरफ से खुलती है। उसके बालकनी में बहुत से गमले है, एक टेबल है और गद्देदार चेयर है। टेबल पर एक कप चाय,एक फोटो फ्रेम,एक राइटिंग pad, पेन स्टैंड और उसमे ढेरो कलम रखे हुए है।

बाहर हवा बहुत तेज है, उम्मीद है रात तक बर्फबारी भी शुरू हो जाए। चारो ओर सन्नाटा है। केबल तेज गति में चल रही हवा की आवाज है जो सरोजनी के कानों में बार बार चुभ रही थी। मानो वो सरोजनी को किसी गहरी विचरण में जाने ही ना देना चाहती हो और पूछ रही हो "क्या सोच रही हो सरोजनी??"।

आचानक से सट...........टट की आवाज आती है। सरोजनी डर जाती है। वो गहरी सांस लेती है और अपने कमरे कि बत्ती को बुझाकर वापस अपने जगह पर आ बैठती है। उसके आधे चेहरे पर लाल लाल इंडिकेटर की रोशनी, मानो उसके अंदर की उग्रता को और भी अच्छी तरह से दर्षा रही हो। रोशनी का एक हिस्सा सरोजनी के सुंदर चेहरे को चूमने के लिए इस तरह तड़प रही थी, की ऐसा प्रतीत हो रहा था की वो अब उस बॉर्डर को चीरती हुई बाहर आ जाएगी।
अब तो हवा के साथ साथ बादल भी ये जानने के लिए उत्साहित हो रहा था कि आखिर सरोजनी सोच क्या रही है। बादल का झुंड खुद में ही गुफ्थ गुह कर रहा था और इसी बीच कभी ठन... तो कभी गड़ की आवाज निकल आती।

सरोजनी अब भी गहरे विचरण में है। परन्तु इस बार उसके आंखो में आशु है।बादल की आवाज अब थोड़ी और तेज हो जाती है मानो सरोजनी को सांत्वना देना चाहती हो। ऐसा प्रतीत होता है जैसे सरोजनी के आंखो से अश्रु की फुहार होने ही वाली है। नीचे रखी pad के पन्ने इस तरह फड़फड़ा रहीं है जैसे सरोजनी के आखो से गिरने वाली पहले बूंद को वो अपने ठिकाने पर लेजाना चाहते हो।फुहार शुरू हो गई। सबसे पहली आशु की बूंद टेबल पर बैठी हुई उस चिटी पर जा गिरी जो इतनी तेज हवा से बचने के लिए कोई सहारा खोज रही थी। अब उसे सहारा मिला भी है, तो ऐसा जो उसके प्राण के पीछे पड़ गया है। सरोजनी का मन बिल्कुल उस प्रकार तड़प रहा है जैसे चिटी अपनी जान बचाने के लिए तड़प रही है। सरोजनी बार बार चाई के कप को उठाती है, उसे फुक्ती है , और फूक से उत्तपन्न हो रहे लहर को देखती और ना जाने क्यों घबराकर बार बार उसे टेबल पर रख देती। वो अपनी विचरण में इतनी खो गई है कि वो भूल चुकी है कि चाई ठंडी हो गई है। लगभग 2 घंटे सभा चालू रही। फिर आचानक से सरोजनी उठती है, टेबल पर रखे चाई को पिती है और दौड़ती हुई अपने कमरे से बाहर जाती है। इस बार उसके चेहरे पर खुशी है

सरोजनी को खुश देखकर हवा तूफानी हो जाती है। बादल जोर जोर से गरजने लगते है। चारो ओर धूल उड़ने लगती है मानो जैसे प्रकृति सरोजनी की खुशी में सामिल होना चाहती हो। बातावर्न आनंदित है।

अब सरोजनी थोड़ी खुशी और कुछ सवाल के साथ तालाब पर लगे झूले पर बैठी हुई है।आचानक से सरोजनी के सामने से कोई गुजरा। वो सरोजनी की मा थी।

मा को देखते ही सरोजनी ने अपनी मा को कस कर पकड़ लिया, जैसे वो उसे कहीं जाने ही नहीं देना चाहती ही। ना जाने सरोजनी का सारा सवाल कहा गुम हो गया था। इस वक़्त सरोजनी के दिल में अपनी मा के लिए डर और दर्द जिसे उसने अपने दिल में 14 वर्षों से दफनाकर रखा था आज उसके चेहरे पर साफ साफ दिख रहा है। मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। सरोजनी और उसकी मा काले बादल को चीरती हुई आसमान कि और चली गई। सरोजनी का मृत सरिर ठंड में जम कर, अब भी झूले पर झूल रहा था। उसके चेहरे पर मासूमियत थी। उसका मासूम चेहरा संसार से अपने इस काया में आखिरीबार खुशी से मानो ये बोल रहा था कि अब वो अपनी मा के साथ इस संसार के हर दर्द और अपनों के खो जाने पर ,दूसरों के द्वारा दिए गए तकलीफ को छोड़ कर हमेशा के लिए जा रही है।

बादल की गरगराहट और भी तेज हो गई है। सरोजनी के कमरे से लाल रोशनी बाहर आ गई है। उसके कमरे से चीजों के टकराने से बहुत आवाज आ रही है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे सरोजनी को आखिरी विदाई दे रहे हो।