राधा-कृष्ण
वृन्दावन का एक भक्त ठाकुर जी को बहुत प्रेम करता था, भाव विभोर हो कर नित्य प्रतिदिन उनका श्रृंगार करता था। आनंदमय हो कर कभी रोता तो कभी नाचता। एक दिन श्रृंगार करते हुए जैसे ही मुकट लगाने लगा, तभी मुकट ठाकुर गिरा देते। एक बार दो बार कितनी बार लगाया पर छलिया तो आज लीला करने में लगे थे। अब भक्त को गुस्सा आ गया, वो ठाकुर से कहने लगा तोह को तेरे बाबा की कसम मुकट लगाई ले पर ठाकुर तो ठाकुर है, वो किसी की कसम...