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मेरी वो रात डर व साहस?
20 मार्च की रात की घटना है कॉलेज अचानक से बन्द किए गए दूसरे दिन कर्फ्यू लगना था मै भोपाल से घर को लौट रही थी बिल्कुल अकेले थी उस दिन झांसी से ट्रेन बदलनी थी रात के 11 बज रहे थे मै ट्रेन का इंतजार कर रही थी स्टेशन पे तभी एक लड़का मेरे पास आया देखने से वो भी कॉलेज स्टूडेंट लग रहा था उसने मेरे से मदद मांगी कि उसको कहीं दूर तक जाना है सामने उसकी ट्रेन खड़ी थी उसके पास पैसे नहीं थे । उसने मुझसे 500 rs. मांगा की दे दीजिए मेरा एटीएम काम नहीं कर रहा मै आपको गूगल पे कर दूंगा ।
वहां आस पास मेरे कोई लेडीज नहीं थी मुझे डर लगा थोड़ा सा फिर सोची की जब लड़की किसी लड़के से मदद मांगती है तो लड़के बिना कुछ सोचे समझे तुरंत हेल्प कर देते हैं तो फिर एक लड़की किसी लड़के की मदद क्यों नहीं कर सकती !
मेरे पास भी कैश में केवल 700 rs. थे मैंने उसको 500 दे दिए और उसने भी अपनी ईमानदारी दिखाई मुझे गूगल पे कर दिया । और फिर वो लड़का वहां से चला गया अपनी ट्रेन की तरफ।
मेरी ट्रेन लेट थी बैठी थी मै अपने प्लेटफार्म में नाइट के 12 बज चुके थे।
फिर अचानक से एक 60 साल के एक बुजुर्ग हाथ में उनके एक डंडा था उनके जिसके सहारे वो चल रहे थे ।
वो दादा जी आए तभी मेरे कान में एक आवाज सुनाई दी कि बेटा सुनो रास्ता बता दो मुझे , मैंने अपना सिर उठाया जब उनकी तरफ देखा तो उनके दोनों आंखें नहीं थी।

उनको दिख नहीं रहा था वो बोले इस प्लेटफार्म में B3 कोच कहा पे आएगा बेटा! अब मै कैसे बताती उनको क्योंकि जहां पर मै बैठी थी वहां से वह कोच बहुत दूर था ।
लगभग 100 मीटर की दूरी पर था। वो जब बोले बेटा अभी मुझे आगे कितना कदम चलना पड़ेगा वहां तक पहुंचने में ये सुनकर मेरी आंखो में आंसू आ गए मै सोच में पड़ गई की क्या करू अब कैसे बताऊं ,
उनको तो चलना भी सही से नहीं आ रहा था आंखों से दिखाई ना पड़ने की वजह से टकरा जा रहे थे कभी किसी खंभे से।
मेरे पास समान था 2 लगेज थे कैसे छोड़कर चली जाती लेकिन तभी एक लड़की दिखी मेरे बगल में आकर बैठ गई , उस समय भी मैंने थोड़ा सा रिस्क लिया ।
खुद की परवाह नहीं की उस लड़की को बोली कि समान रखा है मेरा कुछ समय के लिए देखे रहना अभी मै वापिस आ रही हूं।
मै वो दादा जी के साथ चल पड़ी पर जब देखी उनको उनके कदम सीधे रास्ते की बजाय तिरछे जा रहे थे तो मुझे उनका हाथ पकड़ कर चलना पड़ा , कोरोना का डर भी था ग्लव्स भी नहीं थे मेरे पास ।
सारे बैठे हुए लोग जेंट्स मेरी तरफ देखने लगे क्योंकि नाइट में एक अकेली लड़की एक ओल्ड पर्सन का हाथ पकड़े अपने साथ लेकर आगे चल रही थी बाकी सब मास्क लगाए , ग्लव्स पहने दूर दूर खड़े बैठे थे पर किसी ने साहस नहीं किया था कि उस ब्लाइंड पर्सन की कोई मदद करने सामने आता ।
मैंने उनसे पूछा कि कबसे आपको दिखाई नहीं दे रहा क्या कोई ट्रीटमेंट नहीं हुआ आपका? तो पता चला बताने लगे वो कि उनको ग्लूकोमा बीमारी है चेन्नई में ट्रीटमेंट कराया पर ठीक नहीं हुआ , तब तक उनके कोच की location तक पहुंच चुकी थी। फिर बोली मै आप यही पे रहना आपकी ट्रेन यही पे आएगी अब मै जा रही ।
काफी खुश थे वो खुशी मन से मेरे सिर पे हाथ रखा आशीर्वाद दिया कि बेटी हमेशा खुश रहो सारे सपने तुम्हारे पूरे हों हर जगह तुम्हारे जैसे बच्चे नहीं मिलते तुमने मेरी मदद की भगवान की कृपा हमेशा तुम पर बनी रहे।
ये बात सुनकर मेरी आंखें भर आयी उनकी समस्या को देखकर कि कैसी कैसी समस्याएं आती है लोगो के जीवन में जिसको कितनी मुश्किल से झेलना पड़ता है ।
लेकिन मेरे मन में एक सुकून भी था मुझे खुशी थी कि मुझे आज ऐसे समय पर किसी की मदद करने का मौका मिला ।
और मैंने हिम्मत दिखाई अकेले होने के बावजूद भी डरी नहीं मन में एक विश्वास सा था बस भगवान का नाम लेकर आगे बढ़ गई। जब मै पहुंचीं तब तक वो लड़की भी जा चुकी थी मेरा सामान वहीं वैसे ही रखा था तभी मेरी भी ट्रेन आ गई और चेहरे पे थोड़ा smile आ गई और फिर मै सुबह तक घर पहुंच आई।
ये बात किसी को नहीं बताई बस अपनी डायरी में कलम से बयां कर दी जो आज मैंने साझा कर दी।


© anu singh