...

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ऊषा का सूरज
शर्दियों की शुरुआत ही हुई थी।
वो अपने छत पर खड़ी थी।
शाम ढली जा रही थी।
शाम की खूबसूरती ऐसी थी कि
कोई चाह के भी नजरे फेर नहीं सकता था।
भीनी भीनी सी खुश्बू थी हवाओं में।
सितारों की झिलमिलाहट का नजारा इतना
खूबसूरत था कि उनसे नजरे ओझल ही
नहीं हो पा रही थी।

वो मंजर कुछ ऐसा था कि वो खो चुकी थी
उन नजारों में।
कि तभी जैसे ;
धुंधली सी कुछ यादों ने घेरे में ले लिया हो उसे।
वो आखरी मुलाकात थी।
रजनीश को जिंदगी में आगे बढ़ना था।
उसे वक्त चाहिए था। दूसरी तरफ ऊषा के पास वक्त की ही कमी थी। शादी तय हो चुकी थी। अब तो दोबारा मिलने की कोई बात ही नहीं थी।
भरी_भरी आंखें और रूंधे हुए गले से आवाज
भी नही निकली थी कि आखरी मुलाकात
का वक्त भी खत्म हो चुका था।

भरी_भरी आंखों से वो बरबस ही रोए जा रही थी। शर्द हवाओं के थपेड़े उसे बर्फ की तरह जमा रहे थे कि अचानक ही गरम चादर की नरमाहट का उसे अहसास हुआ।

उसने पीछे पलट कर देखा,
सूरज वहीं खड़ा मुस्कुरा रहा था। फिर अपनी
बाहों के घेरे में लेकर उसने पूछा
"ऊषा किन खयालों में गुम हो "??
"चलो घर के अंदर वरना तबियत खराब हो जायेगी तुम्हारी"।
ऊषा मुस्कुराती है और इस तरह अपने सूरज की बाहों में सिमट जाती है।

क्योंकि;
ऊषा खुश है।
ऊषा का सूरज ही उसका आज है।


#poonamsingh



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