...

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ऊषा का सूरज
शर्दियों की शुरुआत ही हुई थी।
वो अपने छत पर खड़ी थी।
शाम ढली जा रही थी।
शाम की खूबसूरती ऐसी थी कि
कोई चाह के भी नजरे फेर नहीं सकता था।
भीनी भीनी सी खुश्बू थी हवाओं में।
सितारों की झिलमिलाहट का नजारा इतना
खूबसूरत था कि उनसे नजरे ओझल ही
नहीं हो पा रही थी।

वो मंजर कुछ ऐसा...