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मेरे दादा जी
मेरे दादा जी ना तो अत्यधिक शिक्षित थे और ना ही उन्हें कोई ऐसी उपलब्धि ही प्राप्त थी जिसकी वजह से वो औरों को प्रेरित कर सकें...!! किंतु उनकी एक खूबी जो हमेशा से ही मेरी प्रेरणा स्रोत रही ।वो है उनकी कर्मठता..! उनकी कर्मठता मुझे सदैव ही प्रेरित करती हैं। आज वो हमारे बीच नहीं हैं फिर भी उनकी कर्मठता हमारे बीच प्रेरणा स्रोत बन कर हमें प्रेरित करती रहती हैं।
समय की महत्ता को समझते हुए दादा जी हमेशा किसी ना किसी काम में लगे ही रहते थे।जैसे सुबह जल्दी उठ जाना, नित्य क्रिया से निवृत होकर
नास्ता करके खेतों की और बगानों की सैर के लिए निकल जाना।दोपहर तक घर आना और फिर भोजन करके आधे घंटे का विश्राम लेना उसके बाद फिर से अपने कामों में लग जाना जैसे बैलों को चारा देना,दलान की साफ सफाई करना झाड़ू लगाना और फिर अपने हाथों से नारियल की डोरी बनना, झाड़ू बनाना, अपने कपड़े स्वयं धोकर रखना, सुबह से लेकर शाम तक दादा जी कभी खाली नहीं बैठते नतीजा शाम होते होते उन्हें नींद आने लगती और वो जल्दी खा पीकर सो जाते। उनके चेहरे पर एक अजीब सी सुकून मुझे देखने को मिलती,मुस्कुराता चेहरा ,माथे पे संतुष्टि के भाव लिए , आत्मविश्वास से भरी हुई गर्दन उनकी हमेशा ऊपर की ओर ही उठी हुई रहती।वो स्वयं को अपने कार्यों में इतना व्यस्त रखते कि उन्हें दुनिया की कोई खबर ही नहीं रहती। लोग कहते इसका अच्छा है।समय भी बीत जाता है और काम भी हो जाता है। औरों की तरह ये दूसरों की फटे में टांग नहीं अड़ाता..!!
मेरे दादा जी एक किसान थे। जिनके पास कुछ एकर की जमीन,दो जोड़ी बैल और कृषि कार्य में लगने वाले तमाम औजार मौजूद थे। क्यों कि उन्हें औरों से चीजें मांगना पसंद नहीं था। मौसम चाहे कोई भी क्यों ना हो वो सूर्य की भांति अपने निश्चित समय पे बिस्तर छोड़ देते यह गुण एक किसान में होना अति आवश्यक है।दादा जी का कहना था कि
अगर दुनिया को अपनी मुट्ठी में करना है तो वक्त के साथ अपनी चाल मिला लो और अगर सर उठा कर जीना है तो सूरज से नजरें मिला लो...!!उनकी आशा भरी बातें सदा हमें प्रेरित करती हैं।।
किरण