"काला हार" भाग -३
एक रात पल्लवी ने सारा किस्सा किशन को बताया तो किशन ने भी इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं ली,तब पल्लवी ने मन ही मन ये सोच लिया कि अब उसे ही अपने तौर पर सब देखना होगा, लेकिन कब? रोज तो वो स्कूल चलीं जाती है? रात को भी जल्दी डिनर लेकर वो सो जातीं है आखिर उसके पास इतना समय ही कहां है कि वो उस खिड़की को खोलें क्योंकि पल्लवी इतना तो समझ ही चुकीं थीं कि ये खिड़की सालों से नहीं खुली तो अब इसे हथौड़े वगैरह से खोलना होगा इसीलिए उसने एक मुश्त समय के लिए इसे भविष्य के हाथों सौंप दिया,और आख़िर एक दिन पल्लवी की मुराद पूरी हो ही गई, हुआ यूं कि किशन और उसके माता-पिता का एक विवाह समारोह में जाना हुआ विवाह मुरादाबाद में था और किशन और उसका परिवार लखनऊ में रहता था तो किसी तरह...