...

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आशियाना परिंदो का
हो रही धूमिल प्रकृति अब, पहले जैसा वातावरण अब कहां।
ले सकें खुल के सांस अब, वायुमंडल में वो शुद्धता अब कहां।।
बात हो रही आशियाना परिंदों की तो एक बात बताऊं।
परिंदे तो है अभी भी, परिंदों का आशियाना है अब कहां।।

जरूरतों ने कर दिया अंधा इस कदर, परिंदों के दर्द को किसने समझा।
कर दिया बेघर अनजाने में, ये बताओ अब वो जाए तो जाए कहां।।
सच बताऊं तो वो परिंदा सिर्फ परिंदा नहीं आज का मनुष्य है।
निकला हजारों सपने ले कर,घुट रहा अंदर ही अंदर पर बताओ वो जाए कहां।।

सुना है आने वाली है कुछ नई तकनीक, जिसमें मुझे विचारों में डाला है।
आशियाना बनाना हो जाएगा नामुमकिन अब, लोगों के पास जरूरी साधन है कहां।।
दुख दर्द तकलीफ पंछी और मानव की एक ही बराबर है।
रोते हैं दोनों पर, पर सुनने वाला उनका कौन है यहाँ।।

आशियाना परिंदे का बनाना है बड़ा मुश्किल, एक एक तिनकों को जोड़ बनाया जाता है।
पल में बिखर जाते सपने सारे, उनका मदद करता है कौन यहां।।
जोड़ा मैंने परिंदों से आज के मानव को आज की यही सच्चाई है।
मानव ही दुश्मन मानव का, कोई खुद से जीतता है क्या भला।।
© sanskar goyal