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इश्क इबादत-८
दोनो श्रुति और अनुपम का इंतजार करते है और दोनो आते है बस चारो निकल चलते है घर की ओर रुक कर खाना खाते है और बस मस्ती हंसी ठिठोली करते हुए। उस दिन वैष्णवी तो घर लौटी मगर पूरी नही मन तो उसका विश्वास के पास रह गया। उसका दिल भरा जा रहा था गला रुंधा हुआ जी कर रहा था खूब रोए उसे ऐसे कभी खुद को बेचैन नही देखा था खैर इश्क की अपनी भी एक पहचान होती है कमबख्त आखों में नज़र आने लगता है। जिससे इश्क हो वो करीब से गुजर भी जाए तो दिल धौकनी की तरह धड़कता है।किसी और को खबर हो न हो जिससे इश्क हुआ है उसे कमबख्त इश्क खुद बता देता है। हाथ मिलाओ तो हाथ से पसीना तो आता ही है साथ ही साथ हाथ बर्फ की तरह ठंडा भी हो जाता है।उफ्फ !
उसके बाद जब क्लास में वैष्णवी विश्वास से मिली तो नज़र और नज़ारा दोनो बदला हुआ था। न न विश्वास का नहीं वष्णवी का। बड़ी विनम्रता से मिली वो विश्वास से उस पर गाना और गुनगुना रही थी "तेरे इश्क ने साथिया मेरा हाल क्या कर दिया" हा हा हा........
उसने पूछा भी (जब दोनो क्लास टेस्ट के लिए बाहर बैठे इंतजार कर रहे थे)की बार बार एक ही लाइन क्यों गा गा के बोर कर रही है वैष्णवी ने कहा
वैष्णवी - तुझे क्या
विश्वास - चुप हो जा मां
वैष्णवी विश्वास के करीब बिलकुल उसके चेहरे के सामने जा कर उसकी आखों में आंखे डाल कर कुछ पल अपलक उसे देखती है उसे विश्वास की धड़कने बढ़ी सी महसूस होती हैं फिर वो धीरे से गाती है उसके कान में की " तेरे इश्क ने साथिया मेरा हाल क्या कर दिया"। दोनो परीक्षा के लिए क्लास में चले जाते है परीक्षा खत्म होने की घंटी बजती है। सारी भीड़ एक साथ दरवाजे की तरफ भागती है वैष्णवी भी! जैसे किसी ने ऑक्सीजन रोक रखी हो इनकी। बहुत धक्का मुक्की में वैष्णवी भी कोशिश में लगी थी पहले निकलने की अगर किसी को इत्मीनान था तो वो था विश्वास वो अपनी सीट पर टांग पर टांग चढ़ाए मुत्मइन बैठा था। शायद सबकी हड़बड़ी देख रहा था और उनकी बेवकूफी पे मुस्कुरा रहा था की सब चाहे तो एक एक करके कब के चले गए होते मगर भेड़ों की तरह भिड़े हुए थे।अचानक वो बिजली की गति से आगे बढ़ा और वैष्णवी को पीछे खींच लेता है उफ्फ! वैष्णवी का तो दिल बेलगाम घोड़ा हुआ जाता था उसने इसका हाथ जो पकड़ा था
to be continued #shubh
© shubhra pandey