...

0 views

मित्रता का बीज
अनुपमा ने जब सुना कि उसके बड़े ससुर के यहां उनकी छोटी पोती जया की शादी है और घर के सभी लोग जा रहे हैं।तब अनुपमा ने अपने पति से कहा चलिए ना हमलोग भी देहरादून चलते हैं। अजित अनुपमा का पति ने कहा कैसे जाएं हमें तो किसी ने बुलाया ही नहीं है।
यह सुनकर अनुपमा सोच में पड़ गई। फिर दो दिन बाद उसने अपने पति से कहा जब सबको न्यौता आया है तो हमें क्यों नहीं..? आप एक बार वहां देहरादून में बात करके तो देखो शायद हमारे बीच की गलतफहमी दूर हो जाएं..? हा पर हमें तो यह भी नहीं मालूम कि आखिर किस बात की वज़ह से हम नज़रंदाज़ किए जा रहे हैं..?
देहरादून से सभी को न्यौता आया पर हमें ही नहीं बुलाया.? अनुपमा ने कहा छोड़िए ना पुरानी बातों को
हम नये सिरे से रिश्तों की शुरुआत करते हैं।
हमारी शादी को इतने साल हो गए किन्तु ना तो मैं उन भाभियों को जानती हूं और ना ही वो मुझे जानते हैं।
ना हमारे बच्चे ही एक दूसरे को पहचानते हैं। शादी होने वाली है जया की और अपने चचेरे भाई बहन से मिलना तो दूर आज तलक एक दूसरे का शक्ल तक नहीं देखे हैं।
ये कैसे हम अपने हैं जो एक दूसरे को जानते तक नहीं है।
चलिए ना हम मित्रता की नींव रखतें हैं। एक नई शुरुआत करते हैं। आप एक बार फोन करेंगे तो वो हमें जरूर बुलाएंगे। अजित ने कहा ठीक है तुम इतना कहती हो तो मैं भाभी से बात करता हूं और शादी में आने की इच्छा जाहिर करता हूं। जब अजित ने भाभी से इतने सालों बाद बात की तो भाभी को थोड़ा अजीब लगा मगर जब अजित ने देहरादून शादी में आने की इच्छा जाहिर की तो भाभी बहुत खुश हो गई और कहने लगी हमें तो लगा आप हमें भूल गए हो...? मगर आज मैं बहुत खुश हूं।
आज आपने हमें अपना समझ कर फोन किया। शादी में आने की इच्छा जाहिर की और हम से कोई शिकायत भी नहीं की..?? अजित कहने लगा नहीं नहीं भाभी अपनों से शिक़ायत कैसी...?? मैं कैसे भूल सकता हूं आप लोगों को..?? फिर भाभी जी ने बच्चों को ढेर सारा प्यार दुलार
और आशीर्वाद दिया। साथ ही अनुपमा को भी शादी में
सम्मलित होने के लिए आग्रह किया। अब तो देवरानी और जेठानी रोज ही एक दूसरे से फोन पर घंटों बातें किया करती थी। बातों-बातों में अनुपमा ने एक दिन भाभी से पूछा भाभी अगर आप बुरा ना माने तो मैं आप से एक बात पूछूं..? अरे हा हा दुलरी गोतनी पुछो क्या पुछना चाहती हों..? भाभी इतने सालों में आप मुझ से मिलने एक बार भी क्यों नहीं आई..? मिलना तो दूर आप एक बार मुझ से बात तक नहीं की...? भाभी ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा तुम्हारी शिकायतें सही है। छोटी दुल्हन..! बीते दिनों हमारे साथ इतना कुछ हो गया कि मेरा रिश्तों पर से विश्वास ही उठ गया..। और जब बहुत सालों बाद मुझे होश आया तो थोड़ा बहुत एहसास हुआ मुझे मेरी गलतियों का...तब मैंने पुछा सबके लिए..
सबकी खोज खबर जानना चाहा। सभी तो मिल गई मुझे।सब आना जाना भी करती हैं। हमारे यहां तुम्हारी बाक़ी की गोतनिया..! बस एक तुम ही रह गई। इसमें हमारी कोई गलती नहीं है। तुम्हारे घर वाले ही नहीं चाहते थे कि तुम हमलोगों से मिलों...! जिनके भरोसे तुम आंख बंद करके बैठी हो वहीं तुम्हें सभी जगह से निकाल कर फेंकने की जुगाड़ में सालों से लगें हुए हैं। तुम्हें शायद मेरी बातें बुरी लगेंगी मगर सच्चाई यही है। खैर छोड़ो इन बातों को
तुम यहां आ जाओ फीर हम मिलकर बातें करेंगे....!
तुम्हें और भी कुछ बताना है मुझे....!अनुपमा ने जी भाभी मैं जरुर आउंगी..। कह कर फ़ोन रख दिया....!
और जोरों शोरों से जुट गई शादी की खरीदारियों में..!
उसने सभी भाभियों के लिए सिल्क की सुंदर साड़ियां खरीदी और बच्चों के लिए भी एक से बढ़ कर एक सिल्क कि फैंसी साड़ियां एवं नोज पिन खरीदी क्यों कि जया की बड़ी बहनों की कयी साल पहले शादी हो चुकी थी।जया सबसे छोटी थी।जिसकी शादी में अनुपमा अपने परिवार के साथ देहरादून जाने वाली थी। जया का एक भाई भी था उसके लिए भी बेशकीमती टी शर्ट ख़रीदा अनुपमा ने और अपने जेठ जी के लिए भी काटन का कुर्ता लिया। फिर ढेर सारी मिठाइयां लेकर वो अपनी जेठानी से मिलने और शादी में सम्मिलित होने देहरादून के लिए निकल पड़ी..!
वहां पहुंचकर अनुपमा ने अपनी जेठानी के पांव छुए दोनों
देवरानी जेठानी एक दूसरे से मिल कर बहुत खुश हो गई। और भाभी ने अनुपमा का खूब स्वागत भी किया..
बच्चों और देवर से मिल कर भाभी भी बहुत खुश हो गई।
अनुपमा को बहुत अच्छा लगा शादी समारोह में शामिल होकर और शादी की गतिविधियों में अपना योगदान देकर। साथ ही वहां जाकर अपने परिवार के बारे में कुछ ऐसी बातों का पता चला जिसको सुनकर उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई।
भाभी ने कहा मैंने तुम्हें अपनी बड़ी बेटी के शादी में फोन किया था और न्यौता भी भेजा था पर तुम लोग क्यों नहीं आई..??
अनुपमा ने कहा भाभी मेरी नई-नई शादी हुई थी और हम आपको जानते भी नहीं थे। मां जी ने कुछ बताया भी नहीं और जब मैंने अजीत से बात की तो उन्होंने कहा मां सब देख लेगी ।हमें जाने की जरूरत नहीं है । मां के जाने से ही काम हो जाएगा।मैं उन्हें पैसे भेज देता हूं और अजित ने मां जी को पैसे यह कह कर भेजें की अच्छे और ढंग के काम में आने वाले गिफ्ट खरीदे आप लोगों के लिए ।अरे हां छोटी दुल्हन गिफ्ट तो आया था हमारे पास बहुत अच्छा भी था पर वह तुम्हारे नाम से नहीं बल्कि उन्होंने अपने नाम से दिया था। और जब हम सब ने उनसे तुम लोगों के बारे में पूछा तब उन्होंने कहा क्या बताएं हम आप लोगों को वह लोग किसी से कोई मतलब ही रखना नहीं चाहते किसी के साथ रिश्ता
रखना उसे पसंद नहीं.. फिर भाभी ने बताया तुम्हारी सास और जेठानियां कहीं पर भी तुम्हारा नाम आने नहीं देती है ।हर जगह यही कहती है कि उसे किसी से मतलब ही नहीं है। वह किसी से रिश्ता रखना ही नहीं चाहती है।
अनुपमा ने कहा पर भाभी पहले बिटिया की शादी से लेकर अब तक घर में जितनी भी शादी ब्याह हुए हैं उन सब पर हमने मां जी को पैसे भेजे हैं उपहारों के लिए। हां पर तुम्हारा नाम तो कहीं आया ही नहीं। देखो छोटी दुल्हन अपने घर वालों पर विश्वास करना अच्छी बात होती है किंतु आंख बंद करके विश्वास करना ठीक नहीं होता है। तुम लोगों ने भी वही गलती की है अपने घर वालों पर आंख बंद करके विश्वास करने की अब भी वक्त है सुधर जाओ अपने हक के लिए खड़े हो जाओ। वरना तुम्हारे अपने तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेंगे और तुम्हारे पास अफ़सोस करने के अलावा और कुछ नहीं बचेगा..!
भाभी इतना बड़ा धोखा एक मां ने अपने बेटे के साथ किया मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा..??
अरी छोटी दुल्हन यहां पर रिश्तो का कोई मोल नहीं है। सिर्फ पैसों का मोल हैं। यहां कोई किसी का नहीं। अब मुझे ही देख लो जब मुझे जरूरत थी मेरे अपनों की तब किसी ने हमें सहारा नहीं दिया..? थोड़ा सतर्क रहो
अनुपमा ने जी भाभी कहते हुए उन से विदा ली..!
फिर भाभी ने अनुपमा को गले से लगाते हुए कहा छोटी दुल्हन आते रहना। अपना ध्यान रखना और मुझे गलत मत समझना।
अनुपमा सफर में बस यही सोचती रही की आखिर मां जी ने ऐसा क्यों किया हमारे साथ..??
अनुपमा को तो थोड़ा बहुत शक पहले से ही था।भाभी के कहने से सब साफ साफ हो गया कि हमें हमारे ही रिश्तेदारों से दूर करने वाले और हमारे बीच गलतफहमियां पैदा करने वाले और कोई नहीं बल्कि हमारे अपने ही हैं। पर अजीत थे कि मानते ही नहीं थे अब उनकी आंखों की पट्टी भी खुल चुकी थी। और वह तो गहरी सच में पड़ गए थे कि आखिर क्यों..? जिस माता-पिता को मैं भगवान की तरह पूजता हूं ।उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया मैं तो कभी सपने में भी सोच नहीं सकता कि मेरे माता-पिता मेरे साथ ऐसा कुछ करेंगे।आखिर क्या मिला उन्हें मेरे साथ ऐसा करके..?
अब तो मुझे रिश्तों पर से क्या स्वयं पर से भी विश्वास उठ गया है।
कहते हुए अजीत ने अपना सर अनुपमा के कंधे पर रख दिया।
पर इस बार सरप्राइज तो अनुपमा ने भी दिया अपनी सास और जेठानियों को..! देहरादून आकर......!!
किरण