* प्रकृति का सानिध्य *
एक अजीब सा सुकून है प्रकृति के सानिध्य में ! ऐसा महसूस होता है जैसे एक अर्से बाद घर वापसी हुई हो । न जाने क्या तिलिस्म है इस हरे रंग में , एक असीम ही शांति का अहसास होता है इन वृक्षों की ओर ताकने भर से ।
बस कुछ क्षण का सानिध्य ही फिर से तरोताजा व जीवन के उतार चढ़ाव से जुझने की उर्जा दे जाता है ।
अपने गांव के घर के द्वार पर ठंढी के मौसम में धूप तापना और कुछ समय प्रकृति के सानिध्य में गुजारना एक विलोभनीय अनुभव है ।
द्वार पर एक नीम का पेड़ है । हवा में नीम के पत्ते अपने डंढल पर कुछ यूं डोलते हैं मानो हाथ हिलाकर कोई अभिवादन कर रहा है । नन्ही नन्ही गिलहरियों की चपलता और चंचलता बस देखते ही बनती है, पेड़ से कभी घर की छत पर कूद जाती हैं तो कभी जमीन पर उतर कर अपना भोजन ढुढती है ,कुछ बीन कर खाने...
बस कुछ क्षण का सानिध्य ही फिर से तरोताजा व जीवन के उतार चढ़ाव से जुझने की उर्जा दे जाता है ।
अपने गांव के घर के द्वार पर ठंढी के मौसम में धूप तापना और कुछ समय प्रकृति के सानिध्य में गुजारना एक विलोभनीय अनुभव है ।
द्वार पर एक नीम का पेड़ है । हवा में नीम के पत्ते अपने डंढल पर कुछ यूं डोलते हैं मानो हाथ हिलाकर कोई अभिवादन कर रहा है । नन्ही नन्ही गिलहरियों की चपलता और चंचलता बस देखते ही बनती है, पेड़ से कभी घर की छत पर कूद जाती हैं तो कभी जमीन पर उतर कर अपना भोजन ढुढती है ,कुछ बीन कर खाने...