...

0 views

" Rapist "
बलात्कारी एक दिन में न तो पैदा होते हैं और न ही बनाये जाते हैं । हम आप के बीच से आते हैं ये लोग । और हम ही बनाते हैं उन्हें बलात्कारी । जब माँ अपने बेटे के जन्म पर सोहर गाती है और बेटी के जन्म पर अफ़सोस करती है , बलाकारी वहां से बनना शुरू होता है । जब माँ बेटी को ब्रेड देकर बेटे की रोटी पर घी लगाती है , बलात्कारी वहां से पनपता है । जब घर के लोग बेटी को तन ढकने और बेटे को 'मर्द' बनने की सीख देते हैं , बलात्कारी वहां से आगे बढ़ता है । जब कोई अकेली लड़की घर से बाहर निकलती है और कोई सीटी बजाता है और उसे विरोध करने से चुप कराया जाता है , बलात्कारी वहां से शह पाता है ।जब लड़की को सती सावित्री बनने के पाठ पढाये जाते हैं और लड़के को माचो मैन बनने के गुर दिखाए जाते हैं टीवी पर, तब बलात्कारी के पंख लगते हैं । जब देश के राजनेता संसद में बैठ कर पोर्न देखते हैं , वहां से बलात्कारी की आँखें लाल होती हैं । जब कोई लड़का दहेज़ की मांग करता है और लड़की के पिता सर झुका कर उसे स्वीकार कर लेते हैं , वहाँ से बलात्कारी के सींग उगने शुरू होते हैं । जब देश के कानून का मखौल उड़ाने वाले सत्ता की कुर्सी संभालते हैं , बलात्कारी के नाखून नुकीले होने लगते हैं । जब न्याय देने वाले बेईमानी बेचने लगते हैं , बलात्कारी अपना कदम बढ़ाना शुरू करता है । जब परदे पर लड़की को तंदूरी मुर्गी और चखना बनाकर पेश किया जाता है , वहाँ से बलात्कारी की लार टपकनी शुरू होती है । और जब हम आप और तथाकथित सभी ' संभ्रांत ' लोगों की आत्मा मुर्दा हो जाती है , तब ये बलात्कारी शिकार करता है । चीथड़े चीथड़े कर देता है मासूम सपनों को । तब ये बलात्कारी किसी असहाय लड़की के नाखून नोचता है , उसे मारता पीटता और उसे मारता जलाता है । उसे सिगरेट से दागता है । उसके अन्दर रॉड घुसाता है । उसकी बोटी बोटी काट कर फेंक देना का साहस करता है । उसे सड़कों पर नग्न कर फेंक देता है । और हम कहते हैं कि वो बलात्कारी है ? और हम क्या हैं ? सोचा है कभी ?
दुनिया जितनी लड़कों की है , उतनी ही लड़कियों की भी है । उन्हें देवी भले न बनाइये , लेकिन उन्हें पैर की जूती बना कर रखने वाली इस मानसिकता का विरोध कर के एक शुरुआत तो कर सकते हैं हम । यदि हम इस मानसिकता के, ऐसे विचारों के विरोधी नहीं है , और उनके समूल विनाश के लिए काम नहीं करते, आवाज़ नहीं उठाते , तो याद रखिये - हम ही बलात्कारी हैं । हमारे हाथ उन कई अनगिनत लड़कियों के खून से रंगे हैं जिनकी आवाज़ हमने अनसुनी कर दी है । दोष जितना उन दरिंदों का है , उतना ही हमारा भी है । और कितनी 'दामिनियों' का खून चाहिए हमें बलिदान में ? क्या अब भी हम नहीं चेतेंगे ? ज़रा सोचिये!