और वह चली गई।
जीवन को अपने तरीके से जीने का सबका अधिकार है।यह जीवन मेरा है,भावी जीवन साथी के चयन के अधिकार को कोई मुझसे कैसे छीन सकता है। यह विचार थे मेरे अंकल की बेटी के,जो मेरी दीदी की सहपाठी व दोस्त थी।मैं उनहें दीदी कहता था।अंकल पापा के साथ ही अच्छे पद पर कार्यरत थे और कुछ ही दूरी पर रहते थे।मैं अक्सर अपनी दीदी से कहता था कि वह आपकी सहेली कैसे बन गई। और वह भी पक्की सहेली।दीदी उत्तर देतीं हम स्वयं के आचरण को संयम में रखें।वह हमारी जिम्मेदारी...